रविवार, 5 मई 2024

*गदाधरदासजी*

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*दादू दूजा कुछ नहीं, एक सत्य कर जान ।*
*दादू दूजा क्या करै, जिन एक लिया पहचान ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*गदाधरदासजी*
*छप्पय-*
*दास गदाधर गिरिधरन, गाये ज्ञानी विशद गिर ॥*
*लाल विहारी श्याम, सुमिर निशि वासर राजी ।*
*पूजा प्रेम पियास, भक्ति सुख सागर साजी ॥*
*संतन सेती हेत, देत तन मन धन सरबस ।*
*उर अंतर अति गूझ१, वदन वर्णत निर्मल यश ॥*
*इकतार एक हरि भक्ति को, और नमावत नांहिं शिर ।*
*दास गदाधर गिरिधरन, गाये ज्ञानी विशद गिर ॥२९०॥*
गदाधरदासजी ने अपनी वाणी से गिरिधारी श्रीकृष्ण और ज्ञानी भक्तों के उज्ज्वल यशों का गान किया है ।
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आप विहारीलाल श्यामसुन्दरजी का रात्रि दिन स्मरण करते हुए प्रसन्न रहते थे । प्रेमपूर्वक प्रभु पूजा की अभिलाषा आपके मन में बनी रहती थी । आपने सुखसागर परमेश्वर की भक्ति को बहुत सजाया था ।
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संतों से अतिस्नेह करते थे और उनकी सेवा में अपना तन, मन, धन आदि सर्वस्व दे देते थे । आपके हृदय में हरि और संतों की गूढ़१ प्रीति थी । अपने मुख से हरि और संतों का निर्मल यश वर्णन करते थे ।
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आपके अन्तःकरण में एक मात्र हरि भक्ति का एक तार-सा दिबिरदासजी लगा रहता था अर्थात निरन्तर चिन्तन करते रहते थे । अन्य देवी देवों को अपना शिर नहीं नमाते थे ॥
(क्रमशः)

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