शुक्रवार, 3 मई 2024

देखत व्है गयौ भंग

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*दादू काया कारवीं, मोहि भरोसा नांहि ।*
*आसन कुंजर शिर छत्र,*
*विनश जाहिं क्षण मांहि ॥*
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भरत सत्रुघू राम पुनि, जसरथ राणी दोइ ।
बषनां बिणस्या गरब स्यौं, औराँ गिणैं स कोइ ॥६॥
भरत, शत्रुघ्न, राम, राजा दशरथ और उसकी रानियाँ सभी काल को प्राप्त हो गये । जब इन जैसों को भी काल के गाल में समाना पड़ा तब औरों की क्या गिनती है ॥६॥
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बसुदेव पुनि देवकी, नन्द जसौदा संग ।
बलीभद्र सो किसन कौ, देखत व्है गयौ भंग ॥७॥
वसुदेव, देवकी, नंदगोप, यशोदा, बलराम और श्रीकृष्ण- ये सभी देखते ही देखते खत्म हो गए ॥७॥
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हिरनाकस हिरनाछि द्वै, कंस केस भूपाल ।
बषनां अतिका गर्व तैं, मारि गयौ जमकाल ॥८॥
उभय भ्राता हिरण्यकश्यपु व हिरण्याक्ष; राजा कंस व असुर केशी जैसे दुर्दांत और बलशाली भी अतिगर्व करने के कारण अंत में काल रूपी यम के हत्थे चढ़ कर मार डाले गये ॥८॥
(क्रमशः)

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