रविवार, 24 नवंबर 2013

जहँ सेवक तहँ साहिब बैठा ४/२७०

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*परिचय का अंग ४/२७०*
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जहँ सेवक तहँ साहिब बैठा, सेवक सेवा मांहि ।
दादू सांई सब करै, कोई जाने नांहि ॥२७०॥
दृष्टांत - एक दिवाले भाखसी, दादू देखे दोय ।
साँभर नूता सात को, भोगे दादू होय ॥२३॥
एक दिन दादूजी ब्रह्ममुहूर्त में उच्च स्वर से यह भजन गा रहे थे - 
जागहु जिवरा काहे सोवे, सेइ करीमा तो सुख होवे ॥टेक॥ 
यह भजन दादू वाणी में ३३६ का औैर चार पाद का है । उक्त भजन को सुनकर काजी मुल्ला आदि ईर्ष्यांवश यह कहते हुये कि नमाज के समय काफिर हल्ला मचाते हैं । दादूजी को पकड़कर बिलंदखान खोजा के पास ले गये । उसने दादूजी को कैद की कोठड़ी में बन्द कर दिया । 
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दादूजी ने कैद में विषम बार हरि अधार, करुणा बहुनामी० । यह पद बोला । यह दादूवाणी में ४२६ का है और चार पाद का है । आगे पीछे संग रहे० तथा सेवक की रक्षा केरे० ये दो साखियां भी बोली । फिर भगवान् दादूजी के दो शरीर सब को दीखने लगे । तब आश्चर्य करके कैद से छोड़कर क्षमायाचना की । विशेष विवरण दादू चरितामृत के ७ वें बिन्दु में देखें । यहाँ तो दृष्टांत रूप में संक्षिप्त ही दिया है ।
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द्वितीय दृष्टांत कथा - 
सांभर नूता सात को, भोगे दादू होय - 
दादूजी की कैद से मुक्ति और बिलंदखान दादूजी का भक्त बन गया । इससे दादूजी के सात भक्तों ने एक दिन में ही उत्सव मनाये थे और एक समय में सबने भोजन का निमंत्रण दादूजी को दिया था । दादूजी ने सोचा - एक के जाऊँ और एक के न जाऊँ यह तो ठीक नहीं रहेगा और सातों के जाना भी नहीं हो सकता । कारण एक समय भोजन करता हूँ और वह भी अल्प ही करता हूँ । 
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दादूजी का निश्चय जानकर भगवन् ही दादूजी के रूप में द्वार पर बैठ गये । जो आवे उसके साथ ही चले जायें उक्त प्रकार सात रूप करके सब के भगवान् ही चले गये थे । सब के जीम आये तब सांभर में चर्चा चली दादूजी सातों के एक ही समय में जीम गये । अतः बड़े सिद्ध संत हैं । फिर कु़छ भक्तों ने दादूजी के पास आकर पू़छा - आप एक समय में सातों के कैसे जीम आये ? 
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दादूजी ने कहा - मैं तो किसी कें भी नहीं गया । मझे तो बीठलव्यास ने यहां ही भोजन कराया था । बीठलव्यास ने भी कहा - जिस समय का आप लोग कहते हैं, उस समय तो मैंने दादूजी को यहां मंदिर में भोजन कराया था । फिर दादूजी ने ध्यान धरके देखा तो ज्ञात हुआ भगवान् ही सात रूप बनाकर सातों के गये थे ।
(क्रमशः)

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