शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

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卐 सत्यराम सा 卐
१८९. कलियुगी(श्री दादू वाणी)
झूठा कलियुग कह्या न जाइ, 
अमृत को विष कहै बनाइ ॥टेक॥
धन को निर्धन, निर्धन को धन, 
नीति अनीति पुकारै ।
निर्मल मैला, मैला निर्मल, 
साध चोर कर मारै ॥१॥
कंचन काच, काच को कंचन, 
हीरा कंकर भाखै ।
माणिक मणियॉं, मणियॉं माणिक, 
सॉंच झूठ कर नाखै ॥२॥
पारस पत्थर, पत्थर पारस, 
कामधेनु पशु गावै ।
चन्दन काठ, काठ को चन्दन, 
ऐसी बहुत बनावै ॥३॥
रस को अणरस, अणरस को रस, 
मीठा खारा होई ।
दादू कलिजुग ऐसा बरतै, 
साचा बिरला कोई ॥४॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें कलियुगी प्राणियों का स्वरूप दिखा रहे हैं कि हे जिज्ञासुओं ! यह कलियुग पापमय युग है । इसका जैसा स्वरूप है, वैसा पूरा कहा भी नहीं जाता । इसमें उत्पन्न हुए विषयी पामर जीव, अमृतरूप सत्य वाणी को, मिथ्या झूठ रूप विष में छिपाकर बोलते हैं । और जिनके हृदय में राम - नाम रूपी धन है, उनको तो निर्धन कहते हैं और राम - नाम रूपी धन रहित विषयों पामरों को भक्त जी कहते हैं । नीति को तो अनीति कहते हैं और अनीति को युगधर्म बताकर नीति कहते हैं । निर्मल, पाप आदि दोष रहित, सच्चे पुरुषों को दोषी बतलाते हैं और नाना प्रकार के विषय - वासनाओं में आसक्ति रखने वालों को चरित्रवान्, निर्मल बताते हैं । और परमेश्वर प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले साधक पुरुषों को चोर कह कर मारते हैं । कंचन रूप खरे मनुष्य को काच रूप खोटा बताते हैं । और काच रूप खोटे मनुष्यों को, कंचन के समान खरे बताते हैं । हीरा रूप परमेश्वर के नाम को, निरर्थक कंकर रूप जानकर त्यागते हैं, और कहते हैं, राम - राम करने में बेकार समय क्यों खोते हो ? माणिक रूप संतों को पाखण्डी बताते हैं और पाखण्डियों को संसार का कल्याण करने वाले सतगुरु बताते हैं । सत्य को झूठ बताकर त्यागते हैं । पारस रूप सच्चे ब्रह्मवेत्ताओं को पत्थर रूप बताते हैं और काले पत्थर की भॉंति भेषबाना धारण करने वाले पाखण्डियों को सच्चे पारस रूप बताते हैं और कामधेनु, सम्पूर्ण कामना पूर्ण करने वाली गऊ, को साधारण पशुवत् बताने लगते हैं । चंदन रूप, जिनमें ज्ञान - भक्ति - वैराग्य रूप की सुगन्धि निवास करती है, उनको साधारण काष्ठवत् मनुष्य बताते हैं और खाली काष्ठवत् हास्य - रस, शृंगार - रस की बातें कहने वाले मनुष्यों को चंदन रूप कहते हैं । ऐसी - ऐसी विपरीत बातें कलियुगी मनुष्य बहुत सी बना - बना कर कहते हैं । जिस जगह एकत्व भावना रूप विचार रूप रस की चर्चा होती है, उस जगह के लिए कहते हैं, वहॉं कुछ नहीं है और जिस जगह नाना प्रकार के विषय - वासना, लूटना, खसोटना आदि की बातें होती हैं, वहॉं सब कुछ रस बताते हैं, उन सबको मीठा सुख रूप कहते हैं । तत्ववेत्ता सच्चे पुरुष बताते हैं कि कलियुगी प्राणियों का ऐसा - ऐसा बर्ताव रहेगा । ऐसे कलयुगी समाज में सत्यवक्ता पुरुष कोई बिरले ढ़ूंढ़ने से प्राप्त होंगे ।
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साभार : सनातन धर्म एक ही धर्म 
22. कल्कि अवतार ~
इसके भी बहुत पीछे जब कलयुग का अंत समीप होगा और राजा लोग प्राय : लुटेरे हो जायेंगे, तब जगत के रक्षक भगवान् विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर कल्किरूप में अवतीर्ण होंगे कल्कि विष्णु का भविष्य में आने वाला अवतार माना जाता है। 
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पुराणकथाओं के अनुसार कलियुग में पाप की सीमा पार होने पर विश्व में दुष्टों के संहार के लिये कल्कि अवतार प्रकट होगा। कल्कि अवतार कलियुग के अन्त के लिये होगा। ये विष्णु जी के आवतारो में से एक है। जब कलियुग में लोग धर्म का अनुसरण करना बन्द कर देगे तब ये अवतार होगा। विष्णु का अन्तिम अवतार माना जाता है। 
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इसके अतिरिक्त इसी आधार पर 'कल्कि पुराण' का भी नामकरण हुआ है। इसके अनुसार विष्णु का 'कल्कि' अवतार कलियुग के अन्त में होगा। कल्कि रूप में अवतरित होकर विष्णु 'कलि' का संहार कर सत युग का आविर्भाव करेंगे।
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इनके साथ ही पद्या रूप में लक्ष्मी भी अवतार लेंगी। कल्कि इनका पाणिग्रहण करेंगे। इसके बाद विश्वकर्मा द्वारा निर्मित 'शंभल' नगर में ये वास करेंगे। वहीं बौद्धों का दमन तथा कुथोदर नामक राक्षसी का वध करेंगे। इसके उपरान्त 'मल्लाह' नामक राजा की मुक्ति होगी। इसके उपरान्त भूलोक के समस्त अत्याचारों के विनाश के बाद सतयुग का आविर्भाव होगा। भूतल पर देव तथा गन्धर्व आदि प्रकट होंगे। अन्त में कल्कि भगवान वैकुण्ठ लौट जायेंगे। 
ॐ ॐ —

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