मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
शूरा होइ सु मेर उलंघै, सब गुण बँध्या छूटै । 
दादू निर्भय ह्वै रहे, कायर तिणा न टूटै ॥३१॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे शूरवीर पहाड़ों के ऊपर होकर भी युद्ध स्थल में पहुंचते हैं और निर्भय होकर युद्ध मांडते हैं । इसी प्रकार सच्चे शूरवीर साधक, वासना रूप पहाड़ों को उलांघ कर गुणों के बन्धनों से मुक्त होते हैं और काल - कर्म से निडर रहते हैं । सांसारिक विषयी पामर मनुष्यों से तो सामान्य भोग - वासनाओं का तनिक तिनका भी नहीं टूटता अर्थात् उनका कभी त्याग नहीं होता ॥३१॥ 
शालभद्र ता बहिन पति, पुनि द्विज तुलसीदास । 
सोझो सुलतानी किते, गृह तज भये उदास ॥ 
दृष्टान्त ~ शालभद्र की बहन का पति धनासेठ, उसको सत्संग द्वारा मन्द वैराग्य हुआ । उसने सोचा, सबसे पहले स्त्रियों का त्याग करूं । एक स्त्री का रोज त्याग करने लगा, उस त्याग में शालभद्र की बहन भी आ गई । जब बहन शालभद्र के पास गई । शालभद्र ~ बहन कैसे आई ? उपरोक्त वृत्तान्त सुना दिया । 
शालभद्र बोले, कायर है और बहन के बोल सुनते ही वैराग्य को प्राप्त हो गया । उसने तत्काल बत्तीस स्त्रियों के सहित सब कुछ त्याग दिया । और जाकर धनासेठ को बोला ~ उठ कायर, ऐसा त्याग तो कायरों का होता है, सच्चे शूरवीरों का नहीं । इसी प्रकार तुलसीदास जी स्त्री के बोल सुनकर वैराग्य को प्राप्त हुए ।
एक सोझा भक्त और उनकी स्त्री दोनों को सत्संग द्वारा वैराग्य हो गया । एक छोटा बच्चा गोद में था । उसको लेकर बाकी सब बाल - बच्चों को सोते हुए छोड़कर निर्जन स्थान में चल पड़े । आगे चलकर स्त्री बोली ~ पतिदेव ! अपन ने क्या त्यागा ? यह छोटा बच्चा, मोह - जाल तो साथ ही ले आये । तत्काल पेड़ के पत्ते तोड़कर, जमीन पर पत्ते बिछा दिये और उस बच्चे को वहॉं लेटा कर आगे चल दिये । इसको तर तीव्र वैराग्य कहते हैं ।
ऐसे ही सुलतान शाह बादशाह, बलख बुखारे का, बांदी के बोल सुनकर, तत्काल बादशाहत को त्याग कर वैराग्य में मग्न होकर, जहॉं तहॉं घूमने लगे । एक दिन दोनों घर त्यागकर वन में जाने लगे । चलते समय सोझी अपने दोनों बच्चों को साथ ले चली । एक बच्चा गोद का था और दूसरा पैरों चलता था । 
जब चलते - चलते मध्यो हुआ तो एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे । तब सोझी बोली - इन दोनों बच्चों को लाकर हमने भजन में विघ्न ही खड़ा किया है । अगर नहीं लाते तो इनका पालन वहॉं कौन करता ? सोझा ने उसे पास में जाते हुए एक कीड़ी नाल को दिखाते हुए पूछा - इन चींटियों का पालन कौन करता है ? सोझी ने उत्तर दिया - परमात्मा । सोझा बोला - इन बच्चों का पालन भी वह कर सकता था । हमको तो इनके पालने का मिथ्या ही अभिभान है । 
इस बीच दोनों बच्चे सो गए । दोनों को सोता छोड़कर सोझा - सोझी जंगल में रम गए । बड़ा बच्चा जब जागा तो माता - पिता को इधर - उधर खोजने लगा । उस समय वन में एक राजा शिकार करने आया था । उसके कोई पुत्र नहीं था, वह उस बच्चे को ले आया और पुत्रवत उसका पालन - पोषण करने लगा और उसे अपना उत्तराधिकारी बना दिया । 
.कुछ समय बाद जब छोटा बच्चा जागा, तो रोने लगा । रोने का शब्द सुनकर उत्सुकतावश एक भजनानंदी सन्त आये और अनाथ बच्चा समझकर दयाभाव से उसे अपनी कुटिया में ले गए । प्रेम से उसका लालन - पालन करने लगे । धीरे - धीरे बच्चा युवा हो गया और गुरु के बताये मार्ग पर चलकर बाल - ब्रह्मचारी महान् योगी बन गया । उसके प्रवचन सुनने को भक्त - सेवकों की अपार भीड़ लगी रहती थी । वह उस क्षेत्र का एक महान् पूजनीय सन्त माना जाने लगा । 
सोलह सहस सहेलड़ी, तुरी अठारै लक्ख । 
सांई तेरे कारणै, छाड्या सहर वलक्खा ॥ 
शालभद्र सोला तजी, धन्ना तजी बत्तीस । 
एक नारि की सन्तदास, क्या लागे दुर्शीष ॥ 
(श्री दादू वाणी ~ शूरातन का अंग)

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