रविवार, 8 दिसंबर 2013

चिड़ी चंचु भर ले गई ४/३३१

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*परिचय का अंग
४/३३१*
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*चिड़ी चंचु भरि ले गई, नीर निघट नहिं जाइ ।*
*ऐसा बासण ना किया, सब दरिया मांहि समाइ ॥३३१॥*
प्रसंग कथा व दृष्टांत -
गुरु दादू का दर्श कर, अकबर किया संवाद ।
साखि सुनाइ कबीर की, ब्रह्म सु अगम अगाध ॥२८॥
सीकरी शहर में संतप्रवर दादूजी से अकबर बादशाह ने कबीरजी की यह साखी -
तन मटकी अरु मन मही, प्राण विलोवनहार ।
तत्व कबीरा ले गया, छाछ पिवे संसार ॥
सुनाकर कहा - संत तो एक कबीरजी ही हो गये । वे अपने शरीर रूप मटकी में मन रूप दही को मथकर अर्थात मन के द्वारा उच्च कोटि को साधना करके भगवत् तत्व रूप मक्खन तो निकालकर ले गये । अब पीछे वालों को तो छाछ ही मिलती है ।
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यह सुनकर दादूजी ने कहा -
तन मटकी अरु मन महीं, प्राण विलोवनहार ।
तत्व कबीरा गह रहा, औरन को आधार ॥
इस साखी का उत्तरार्ध उक्त प्रकार है, कबीरजी तत्व को ग्रहण करके तृप्त हो गये किन्तु पीछे वालों का आधार भी वही तत्व है । कारण ? वह अपार है । फिर भी जब अकबर का शिर हिला तब दादूजी ने उक्त ३३१ की साखी चिड़ी चंचु भर ले गई, सुनाई और कहा - समुद्र से चिड़िया खूब पेट भरकर पानी पी लेती है, किन्तु उससे समुद्र का पानी तो नहीं घटता है, वैसे ही कबीरजी भी भगवत् तत्व से तृप्त हो गये हैं किन्तु भगवत् तत्व में कोई कमी नहीं आई है ।
ऐसा कोई भी व्याप्य(एक देशी) घट नहीं है, जिसमें व्यापक(सर्व देशी) समा जाय ।
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भगवत् तत्व से अनन्त संत तृप्त हुये हैं और अनन्त ही होंगे भी किन्तु उसमें कु़छ भी कमी नहीं आयेगी । दादूजी के उक्त वचन सुनकर अकबर समझ गया और मस्तक नमाते हुये हाथ जोड़कर बोला । भगवन् ! ऐसा उत्तर आज तक किसी ने भी नहीं दिया था । अतः आपको अनेक धन्यवाद हैं और आज से मैं आपको गुरु ही मानता हूं । आप अवश्य संसार - सागर से तारने वाले हैं ।
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दादू जीव अजा बिघ काल है० इस ३४५ की साखी से ३५० की साखियों की प्रसंग कथा - किसी साधक ने नामदेवजी का शब्द जो इन साखियों के नीचे छपा है और चार चरण का हैं । उसका अर्थ समझाने के लिये दादूजी से प्रार्थना की थी । अतः उसका अर्थ समझाने को ही उक्त ३४५ से ३५० तक की साखियां कही थी । अर्थ दादू गिरार्थ प्रकाशिका टीका में देखें ।
इतिश्री परिचय का अंग ४ समाप्तः ।
(क्रमशः)

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