रविवार, 20 दिसंबर 2015

= १०२ =

卐 सत्यराम सा 卐
किहिं मारग ह्वै आइया, किहिं मारग ह्वै जाइ ।
दादू कोई ना लहै, केते करैं उपाइ ॥ 
शून्य हि मार्ग आइया, शून्य हि मारग जाइ ।
चेतन पैंडा सुरति का, दादू रहु ल्यौ लाइ ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya
~ ध्यान, ध्यान, ध्यान।
भगवान जेतवन में विहरते थे। उनकी देशना में निरंतर ही ध्यान के लिए आमंत्रण था।
देशना का अर्थ होता है, कहना, समझाना, फुसलाना, लेकिन आदेश न देना। देशना का अर्थ होता है, राजी करना, लेकिन नियंत्रित न करना। देशना का अर्थ होता है, तुम्हारी बात के प्रभाव में, तुम्हारी बात की गंध में कोई चल पड़े, तो ठीक, लेकिन किसी तरह का लोभ न देना, किसी तरह के दंड की बात न करना। क्योंकि जो लोग लोभ के कारण चल पड़ते हैं, वे चलेंगे ही नहीं। जो दंड के कारण चल पड़ते हैं, वे भी नहीं चलेंगे।

तुमने अगर चोरी इसलिए नहीं की कि तुम्हें नर्क का भय है, तो तुम यह मत सोचना कि तुम अचोर हो, तुम हो तो चोर ही। चोरी भला न की हो, फिर भी तुम चोर हो। अगर नर्क का भय न होता तो तुम जरूर करते। अगर आज तुम्हें पता चल जाए कि नर्क इत्यादि नहीं होते, तो तुम आज ही करोगे। अगर तुमने कुछ पुण्य किया स्वर्ग के लोभ में, तो तुमने किया ही नहीं। तुमने कुछ दान दिया स्वर्ग के लोभ में, तो तुमने दिया ही नहीं। दान का लोभ से कैसे संबंध होगा! दान तो लोभ के विपरीत है। तुमने दिया भी इसीलिए कि पा सको।

पंडित—पुरोहित लोगों को समझाते हैं, यहां एक दो, वहां एक लाख गुना मिलेगा। यह दान हुआ! यह तो बड़ा मजेदार सौदा हुआ। बड़ा अदभुत सौदा हुआ, ऐसा सौदा यहां तो होता ही नहीं कि तुम एक दो और एक लाख गुना मिलेगा। यह तो लाटरी हुई! और यह तो बिलकुल पक्का है कि मिलने ही वाला है, और इसीलिए तुमने एक दे भी दिया—एक पैसा दे दिया, एक लाख पैसे मिलेंगे, एक रुपया दे दिया, एक लाख रुपये मिलेंगे। यह तो लोभ से दान निकला। और लोभ से दान कैसे निकल सकता है!

दान तो निकलता है जब चित्त अलोभ में होता है। और भय से नीति नहीं निकलती। नीति तो तभी निकलती है जब चित्त अभय में प्रतिष्ठित होता है।

तो बुद्ध न तो भय देते हैं, न लोभ। देशना का अर्थ होता है, सिर्फ निवेदन कर देना, ऐसा है। बस, ऐसा है, वैज्ञानिक ढंग से कह देना।

इसको ठीक से समझो। जैसे वैज्ञानिक अगर तुमसे कहेगा कि आग जलाती है, तो वह यह नहीं कह रहा है कि आग को छुओ मत। वह कहता है, तुम्हारी मौज। छूना हो छुओ। आग जलाती है। वह यह भी नहीं कुह रहा है कि आग तुम न छुओगे तो बड़ा पुण्य होगा। वह इतना ही कह रहा है, न छुओगे तो जलने से बच जाओगे। तो जल जाओगे। जलना हो तो छू लो, न जलना हो तो मत छुओ।

छुओगे लेकिन जब वैज्ञानिक कहता है, आग जलाती है, तो वह केवल तथ्य की सूचना दे रहा है। वह इतना ही कह रहा है कि यह आग का गुणधर्म है कि वह जलाती है। तुम्हें करना हो, करो, न करना हो, न करो, तुम्हारे लिए कोई आदेश नहीं है।

देशना का अर्थ होता है, आदेश—रहित उपदेश। सिर्फ तथ्य का निवेदन।

तो बुद्ध निरंतर ही ध्यान के लिए देशना देते थे। सुबह, दोपहर, सांझ, बस एक ही बात समझाते थे—ध्यान, ध्यान, ध्यान।...osho

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