बुधवार, 16 दिसंबर 2015

पद. ४१८

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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४१८. रंग ताल ~
सुरजन मेरा वे ! कीहैं पार लहाऊँ । 
जे सुरजन घर आवै वे, हिक कहाण कहाऊँ ॥ टेक ॥ 
तो बाझें मेकौं चैन न आवै, ये दुख कींह कहाऊँ । 
तो बाझें मेकौं नींद न आवै, अँखियाँ नीर भराऊँ ॥ १ ॥ 
जे तूँ मेकौं सुरजन डेवै, सो हौं शीश सहाऊँ । 
ये जन दादू सुरजन आवै, दरगह सेव कराऊँ ॥ २ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव परमेश्‍वर से विनती कर रहे हैं कि हे हमारे सुन्दर प्रीतम ! आपके वियोग - जन्य इस विरह के दु:ख से हम कैसे पार होवें ? हे सुन्दर प्रीतम ! आप हमारे हृदय रूपी घर में आओ, तो हम आपको अपनी कहानी सुनावें । आपके बिना हमको चैन नहीं आता है । यह दु:ख हम किसको कहकर सुनावें ? आपके बिना हमें आंखों में नींद नही आती है और हमारे नेत्र आपकी याद कर - करके आसुओं से पूर्ण हो रहे हैं । हे देवों के देव ! जो भी कसौटी रूप दुःख आप हमको देओगे, वह सब अपने सिर पर सहन करेंगे । हम तो आप ही के जन हैं । हे भक्तों के भक्त ! हमारी हृदय रूपी दरगाह में आप आइये, तब हम आपकी सेवा करके आपके दर्शन पावेंगे । 
“व्याधि जन, विरही वधू, सेवक साहिब संत । 
ॠणी रसिक चाकर कहो, क्यों सोवै निश्‍चिंत ॥

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