बुधवार, 16 दिसंबर 2015

= विन्दु (१)५१ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= अथ विन्दु ५१ दिन ३३ =*
*= संतों का वास्तविक देश तथा तत्त्व वर्णन =*
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३३वें दिन सूर्योदय होने पर अकबर बादशाह सत्संग के लिये दादूजी के पास बाग में गया और प्रणाम कर, हाथ जोड़े हुये सामने बैठ गया फिर कुछ क्षणों के पश्चात् बोला स्वामिन् ! वास्तविक स्थिति को प्राप्त करने वाले महात्माओं का देश कौनसा है ?
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वे जहां रहते हैं, वह देश कितना दूर है ? यह मुझे बताने की कृपा करें । आप सब कुछ जानते हैं, आप मेरे विचार से तो साक्षात् परमात्मस्वरूप हैं । आपमें मैं किसी प्रकार की भी कमी नहीं देखता हूँ । अतः आप मेरे उक्त प्रश्न का यथार्थ उत्तर देने में पूर्ण रूप से समर्थ हैं । मैं भी आपका सेवक हूँ, इससे मुझे पूर्ण आशा है कि आप यथार्थ उत्तर देंगे ।
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अकबर का उक्त प्रश्न सुनकर तथा उसकी पूर्ण जिज्ञासा जानकर दादूजी बोले -
"एक देश हम देखिया, जहँ ऋतू नहिं पलटे कोय ।
हम दादू उस देश के, जहँ सदा एक रस होय ॥"
वास्तविक स्थिति(ब्रह्म प्राप्ति रूप स्थिति) को प्राप्त होने वाले महात्माओं का देश, एक अद्वैत-स्थिति रूप ही होता है । वहां ऋतु परिवर्तन नहीं होता है । सदा एक समान ही स्थिति रहती है । हम भी उसी देश के हैं ।
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एक देश हम देखिया, जहँ बस्ती ऊजड़ नांहिं ।
हम दादू उस देश के, सहज रूप ता मांहिं ॥
एक देश हम देखिया, नहिं नेड़े नहिं दूर ।
हम दादू उस देश के, रहे निरंतर पूर ॥
आत्मस्वरूप ब्रह्म देश को समीप व दूर नहीं कहा जा सकता, वह तो सदा सब में परिपूर्णरूप से स्थित है । अपने से भिन्न को ही समीप व दूर कहा जाता है ।
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एक देश हम देखिया, जहँ निशि दिन नांहीं घाम ।
हम दादू उस देश के, जहाँ निकट निरंजन राम ॥
एक देश अर्थात् निर्विकल्प समाधिरूप देश भी हमने देखा है, वहां भी रात्रि, दिन, छाया, धूप, आदि नहीं होते हैं, हम उसी निर्विकल्प समाधिरूप देश के हैं अर्थात् अधिकतर निर्विकल्प समाधि में स्थित रहते हैं । उस स्थिति में भी निरंजन राम अति निकट अर्थात् स्वस्वरूप होकर ही भासते हैं ।
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बारह मास नीपजे, तहां किया सु प्रवेश ।
दादू सूखा ना पड़े, हम आये उस देश ॥
जिस निर्विकल्प समाधिरूप देश में बारह मास अर्थात् प्रतिक्षण ही परमानन्द की प्राप्तिरूप खेती उत्पन्न होती रहती है, वहां ही हमने अपने मन को लीन किया है । वहां परमानन्द का अभावरूप दुष्काल तो कभी भी नहीं होता है । यदि तुम कहो कि आप हमारे सामने विराजे हैं, तो यह ठीक है किंतु हम उस निर्विकल्प समाधिरूप देश से ही इस समाधि उत्थान रूप देश में आये हैं, अधिकतर उसी में रहते हैं ।
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जहँ वेद कुरान की गम नहीं, तहां किया सु प्रवेश ।
तहँ कुछ अचरज देखिया, यहु कुछ औरहि देश ॥
जहां वेद और कुरान की गति नहीं होती है । क्यों नहीं होती है ? वेद, कुरान तो शब्दरूप हैं । इससे वे उसके स्वरूप का कथन करके भी उससे इधर ही रह जाते हैं, उसमें प्रवेश नहीं कर सकते । हमने आत्म-स्वरूप से निर्विकल्प समाधि द्वारा उसमें प्रवेश किया है अर्थात् निर्विकल्प समाधि में एक रूप ही हो जाते हैं । वहां अति आश्चर्य देखा जाता है, जिसका पूर्ण रूप से वैखरी वाणी द्वारा वर्णन भी नहीं किया जा सकता है किंतु इतना उस समय अनुभव में आता है कि वह देश इन मायिक प्रदेशों से भिन्न ही है । उसे देखने वाला अर्थात् निर्विकल्प समाधि में जाने वाला ही यथार्थ रूप से समझ सकता है, कथन तो उसका अधूरा ही होता है ।
(क्रमशः)

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