गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

पद. ४२६

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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४२६. चौताल ~
विषम बार हरि अधार, करुणा बहु नामी । 
भक्ति भाव बेग आइ, भीड़ भंजन स्वामी ॥ टेक ॥ 
अंत अधार संत सुधार, सुन्दर सुखदाई । 
काम क्रोध काल ग्रसत,प्रकटो हरि आई ॥ १ ॥ 
पूरण प्रतिपाल कहिये, सुमिर्‍यां तैं आवै । 
भरम कर्म मोह लागे, काहे न छुड़ावै ॥ २ ॥ 
दीनदयालु होहु कृपालु, अंतरयामी कहिये । 
एक जीव अनेक लागे, कैसे दुख सहिये ॥ ३ ॥ 
पावन पीव चरण शरण,युग युग तैं तारे । 
अनाथ नाथ दादू के, हरि जी हमारे ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव करुणा विनती कर रहे हैं कि हे हरि ! अब यह अन्त का कठिन समय आ रहा है । आप ही के नाम का एक हमारे आधार है । हे करूणा - सिन्धु दयालु बहुनामी ! आप भक्ति - भाव वाले भक्तों के पास जल्दी ही आ जाते हैं और उनके भीड़ कहिए दुःख का भंजन करने वाले आप ही हैं । अन्त में आप ही उनके आधार हैं । अपने संत भक्तों की बात को आप ही सुधारते हैं । हे सुन्दर ! आप ही सुखदायी, सुख देने वाले हो । हे हरि ! ये काम, क्रोध, लोभ, मोह, हमको खा रहे हैं । आप हृदय में प्रकट होकर इनसे हमको बचाइये । हे प्रभु ! आप सब प्रकार अपने भक्तों का प्रतिपालन करने वाले पूर्ण - काम हैं । जब आपके भक्त आपको पुकारते हैं, तब आप तत्काल ही आकर उनकी रक्षा करते हैं । हे स्वामी ! नाना प्रकार के भ्रम रूपी कर्म और मोह - ममता ने हमको घेर लिया है । हे प्रभु ! आप हमको इनसे क्यों नहीं छुड़ाते हो ! हे दीन - दयाल ! अब कृपा करें । आप अन्तर्यामी कहलाते हैं । 
हे प्रभु ! इस शरीर में हमारा तो यह एक जीव है और इसके अनेकों आसुरी सम्पदा रूप शत्रु लग रहे हैं । इन सबका दुःख हम कैसे सहन करें ? हे पवित्र स्वरूप मुख प्रीति का विषय पीव ! अब तो हम आपकी शरण में हैं । हे नाथ ! युग - युग में आप ने अपनी शऱण में आये संत - भक्तों का उद्धार किया है । ब्रह्मऋषि कहते हैं कि हम तो अनाथ हैं । हे हरि ! आप ही हमको तारने वाले हमारे नाथ हो । 
प्रसंग - सांभर के हाकिम बिलन्दखान ने कुपित होकर दादूजी को कैद में डाल दिया था, तब उक्त पद से धरमात्मा से प्रार्थना की थी और कारागार से मुक्त हो गए थे

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