मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

पद. ४२४

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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४२४. केवल विनती । गज ताल ~
हाथ दे हो रामा, तुम सब पूरण कामा, 
हौं तो उरझ रह्यो संसार ॥ टेक ॥ 
अंध कूप गृह में पर्यो, मेरी करहु सँभाल ।
तुम बिन दूजा को नहीं, मेरे दीनानाथ दयाल ॥ १ ॥ 
मारग को सूझै नहीं, दह दिशि माया जाल ।
काल पाश कसि बाँधियो, मेरे कोई न छुड़ावनहार ॥ २ ॥ 
राम बिना छूटै नहीं, कीजै बहुत उपाइ ।
कोटि किया सुलझै नहीं, अधिक अलूझत जाइ ॥ ३ ॥ 
दीन दुखी तुम देखताँ, भौ दुख भंजन राम ।
दादू कहै कर हाथ दे हो, तुम सब पूरण काम ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमइं, केवल विनती कर रहे हैं कि हे हमारे समर्थ स्वामी राम ! आप अपना दया रूपी हाथ हमको पकड़ा कर इस संसार - समुद्र से पार करिये । आप अपने आत्मीय जनों की सम्पूर्ण कामना पूर्ण करने वाले हैं । मैं तो इस संसार में नाना प्रकार की वासनाओं में उलझ रहा हूँ । प्रभु ! हे नाथ ! यह घर - द्वार आदि अन्ध कूप के समान हैं, इनमें नाना प्रकार की कामना रूप अंधकार में पड़े हैं । अब आप ही अपना अंश जान कर हमारी संभाल करो । हे दीनानाथ दयालु ! आपके बिना अब हमारा इस समय कोई भी रक्षक नहीं है । दसों दिशाओं में आपका माया रूप जाल बिछा हुआ है । इसमें आपकी प्राप्ति का हमें मार्ग नहीं दीख पड़ता है । हे राम जी ! कर्म रूपी काल की फांसियों से हम बँध रहे हैं । इस फांसी से हमको आपके बिना दूसरा और कोई भी छुड़ाने वाला नहीं दीख पड़ता है । हे राम जी ! आपके बिना हमारा छुटकारा नहीं होगा, हमने बहुत से उपाय करके देख लिये हैं । क्योंकि हमने करोड़ों प्रकार के सकाम कर्म रूप साधन साधे हैं, परन्तु हम ज्यादा से ज्यादा संसार में उलझते हुए जा रहे हैं । हे राम जी ! आपके देखते हुए हम दीन गरीब आपके दास, संसार रूपी आवागमन कष्ट से अति दुखी हैं । इस हमारे दु:ख को आप ही निवारण करने वाले हैं । ब्रह्मऋषि कहते हैं कि हे राम ! आप अपना दया रूपी हाथ हमको पकड़ा कर संसार से पार करिये, क्योंकि आप ही अपने दासों की सम्पूर्ण कामना पूर्ण करने वाले पूर्ण राम हैं

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