गुरुवार, 21 जनवरी 2016

= १९७ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू जब तैं हम निर्पख भये, सबै रिसाने लोक ।
सतगुरु के परसाद तैं, मेरे हर्ष न शोक ॥ 
निर्पख ह्वै कर पख गहै, नरक पड़ैगा सोइ ।
हम निर्पख लागे नाम सौं, कर्त्ता करै सो होइ ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya ~

'समाज को मूर्ख लोगों की जरूरत होती है
दुख के लिए किसी प्रतिभा की आवश्यकता नहीं होती कोई भी इसे कर सकता है, सुख के लिए योग्यता, प्रतिभा, और सृजनात्मकता की आवश्यकता होती है| 

केवल सृजनात्मक व्यक्ति ही प्रसन्न होते हैं|

प्रसन्न होने के लिए बुद्धिमत्ता की जरूरत है, और लोगों को बुद्धिहीन होने को ही शिक्षित किया गया है| समाज हमारी बुद्धिमत्ता को खिलने नहीं देना चाहता| 

समाज को बुद्धिमत्ता की आवश्यकता ही नहीं है, वास्तव में उसे बुद्धिमत्ता से डर लगता है| समाज को मूर्ख लोगों की जरूरत होती है| क्यों? क्योंकि मूर्खों को नियंत्रित किया जा सकता है| और यह जरूरी नहीं कि बुद्धिमान व्यक्ति आज्ञाकारी हो, वे आज्ञा मान भी सकते हैं और नहीं भी मान सकते| पर बुद्धिहीन व्यक्ति आज्ञा का उलंघन नहीं करता| वह हमेशा से ही नियंत्रण में रहने को तैयार रहता है| बुद्धिहीन व्यक्ति को हमेशा ही किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है, जो उस पर नियंत्रण रख सके, क्योंकि उसके पास स्वयं के जीवन ज़ीने की भी समझ नहीं होती| वह चाहता है कि कोई हो, जो उसे निर्देशित कर सके, वह हमेशा ही उस व्यक्ति की खोज में रहता है जो उस पर शासन कर सके| 

राजनैतिक व्यक्ति यह नहीं चाहते कि दुनिया में बुद्धिमत्ता हो, पुजारी भी दुनिया में बुद्धिमत्ता को पसंद नहीं करते| सेना के जनरल भी यह नहीं चाहते कि दुनिया में बुद्धिमत्ता हो| असल में कोई भी यह नहीं चाहता| लोग यही चाहते रहे हैं कि सब बुद्धिहीन रहें, ताकि हर व्यक्ति आज्ञाकारी, सेवक रह सके और कभी भी दायरे से बाहर न जाए, हमेशा ही भीड़ का हिस्सा बना रहे| और तभी ही चालाकी से इनका उपयोग किया जा सके और उन पर शासन और नियंत्रण किया जा सके| 

बुद्धिमान व्यक्ति विद्रोही होगा| बुद्धिमत्ता विद्रोह है| बुद्धिमान व्यक्ति स्वयं से ही निर्णय करेगा कि हां कहना है या नहीं कहना है| 

बुद्धिमान व्यक्ति परंपरावादी नहीं हों सकता, वह पुरानी चीजों की पूजा करता हुआ नहीं रह सकता; अतीत में कुछ भी पूजा योग्य नहीं है| बुद्धिमान व्यक्ति भविष्य का निर्माण करना चाहता है, और वर्तमान में जीना चाहता है| उसके वर्तमान में ज़ीने का ढंग, उसके भविष्य के निर्माण का ढंग है| 

बुद्धिमान व्यक्ति अतीत से चिपक कर उसकी लाश को ढोता नहीं रहता| 

वे कितनी ही सुदंर हों, कितनी ही कीमती, वह लाशों को ढोता नहीं| वह अतीत से पूरी तरह मुक्त हों चुका है; वह जा चुका है और वह हमेशा के लिए जा चुका| लेकिन बुद्धिहीन परंपरावादी होता है, वह पुजारी का अनुकरण करने को सदैव तैयार रहता है, वह किसी मूर्ख राजनीतिज्ञ का अनुसरण करने को तैयार रहता है, किसी भी आज्ञा को मानने को तैयार रहता है| कोई भी व्यक्ति जो सत्ता में हों, वह उसके पांवों में गिरने को हमेशा ही तैयार रहता है| बुद्धिमानी के बिना कोई प्रसन्नता नहीं हो सकती| व्यक्ति केवल तभी ही प्रसन्न हो सकता है, जब उसमें बुद्धिमत्ता हो, पूर्ण बुद्धिमत्ता| 

ध्यान तुम्हारे बुद्धिमत्ता को अभिव्यक्त करने का उपकरण है| तुम जितना ध्यान करते हो, उतने ही अधिक तुम बुद्धिमान बनते हो| 

लेकिन यह स्मरण रहे, बुद्धिमत्ता से मेरा मतलब बौद्धिकता से नहीं है| बौद्धिकता मूर्खता का ही अंग है| 

बुद्धिमत्ता बिल्कुल ही एक अलग आयाम है, इसका मस्तिष्क से कोई संबंध नहीं है| बुद्धिमत्ता एक ऐसी चीज है जो तुम्हारे अंतरतम से आती है| जिसकी धारा तुमसे बहती है, और इससे तुम्हारे अंदर बहुत कुछ बढ़ने लगता है| तुम प्रसन्न रहने लगते हो, तुम सृजनात्मक होने लगते हो, तुम विद्रोही होने लगते हो, तुम साहसी होने लगते हो, तुम असुरक्षा में रहना पसंद करने लगते हो, तुम अज्ञात में छलांग को तत्पर रहते हो| तुम ख़तरों में जीना शुरू कर देते हो, क्योंकि ज़ीने का केवल यही ढंग है| 

मूर्खों के लिए बड़े राजमार्ग होते हैं, जहां भीड़ चल रहीं है| और सदियों-सदियों वे उन पर चलते ही रहें हैं और कही नहीं पहुंचते, घेरे में ही घूमते रहते हैं| तब तुम्हें यह सोचने की सुविधा होती है कि तुम बहुत सारे लोगों के साथ हो, तुम अकेले नहीं हो| 

बुद्धिमत्ता तुम्हें अकेले होने का साहस देती है, और बुद्धिमत्ता तुम्हें सृजनात्मक होने की दृष्टि देती है| सृजनात्मक होने की महान प्रेरणा, प्रबल आकांक्षा पैदा होने लगती है| केवल तभी, उसके परिणामस्वरूप तुम प्रसन्न और आनंदित होते हो| 

ओशो, दि बुक ऑफ विज़डम

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