शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

= विन्दु (१)६४ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६४ =*
*= दौसा प्रसंग, गेटोराव पर जलेबी, परमानन्द को पुत्र प्राप्ति वर =*
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फिर ब्रह्म चिन्तन करते हुये दादूजी अपने शिष्यों संतों के सहित शनैः शनैः लगभग दो घंटे सूर्य चढ़ने पर दौसा नगर में पहुँचे । संतों का विचार था किसी स्थान पर ठहर कर अपनी दैनिक साधना करें । बाजार से ये संत निकले किंतु उस समय वहां जैनों की अधिक आबादी थी, इस से इन संतों को किसी ने राम राम बोल कर प्रणाम भी नहीं किया और जहाँ भी ठहरने का विचार करैं वहां लोग कहैं - आगे जाओ । और इस प्रकार आगे जाओ, आगे जाओ ही कहते रहे ।
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यह व्यवहार वहां के लोगों का देखकर दादूजी बोले -
"जो निधि१ कहीं न पाइये, सो निधि घर घर आहि ।
दादू महिंगे मोल बिन, कोई न लेवे ताहि ॥"
अर्थात् जो ज्ञान, भक्ति, वैराग्यादि रूप महान् धन के कोस१ संत खोज करने पर भी कहीं नहीं मिलते, वे आज दौसा नगर के घर-घर के द्वार पर आ रहे हैं किंतु श्रद्धा भावरूप महान् मूल्य ले बिना इस संत कोश के धन ज्ञानादिक को कोई भी अज्ञानी नहीं ले रहा है ।
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*= गेटोराव तालाब पर पीपल हरा होना, जलेबी आना =*
उक्त प्रकार वे संत नगर के इस ओर से प्रवेश कर नगर के उस ओर आ गाये, तब एक व्यक्ति को पूछा - भैया ! यहां कोई तालाब है क्या ? उसने कहा - है, इसी मार्ग से आगे चले जाइये । तब सब संत उस मार्ग से आगे चल दिये । कुछ दूर जाने पर 'गेटोराव' नामक एक तालाब आया । उसके तट पर एक पीपल का वृक्ष भी दिखाई दिया ।
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सब संत पीपल के वृक्ष के नीचे गये; उसकी छाया में कमंडलु आदि रख के उसकी छाया बहुत कम देखकर दादूजी ने ऊपर की ओर देखा तो उसका अधिक भाग सूखा दिखाई दिया । तब दादूजी ने कहा - "संतों को आश्रय देने वाला यह पीपल भी अधिकतर सूखा ही है किन्तु संतों का योग क्षेम करने वाले परमात्मा तो करुणा-सागर हैं, इस पर दया करेंगे तो यह भी संतों को अपनी छाया पूर्ण रूप से दे सकेगा ।"
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इतना कहते ही देखते-देखते ही वह पीपल पूर्णरूप से हरा हो गया फिर संतों का पसीना सूखने पर दादूजी ने कहा - "संतों, अब स्नान कर लो ।"
दादूजी का उक्त वचन सुनकर जग्गाजी बोले - "अब स्नान कराकर क्या गर्म-गर्म जलेबी जिमायेंगे" तब दादूजी ने यह समझकर कि संत भूखे हैं कहा - संतों ! जलेबी तुम्हारे लिये दुर्लभ नहीं हैं ।
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तुम जिनके भक्त हो वे विश्वम्भर सब का भरण पोषण करते हैं और भक्त 'कामतरु' नाम से प्रसिद्ध हैं, फिर तुमको जलेबी क्यों नहीं देंगे ? अवश्य देंगे किन्तु आप लोग अपने मन को ठीक स्थिति में रक्खें और भोजन के पहले जो प्रतिदिन ध्यानादि कार्य करते हैं, उनको करें, फिर भोजन के समय प्रभु नहीं दे तो कह सकते हो । तुम अपना काम करो प्रभु का काम प्रभु अवश्य करेंगे ।"
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यह कहकर दादूजी ने कहा -
"पूरण हारा पूरसी, जो चित रहसी ठाम ।
अंतर तैं हरि उगमसी, सकल निरंतर राम ॥"
अर्थात् विश्व का भरण पोषण करने वाले हरि व्यापक होने से निरंतर सर्व स्थानों में रहते हैं, वे इस सरोवर के भीतर से भी उमग सकते हैं अर्थात् जलेबी दे सकते हैं । ऐसा कह कर दादूजी ने हरि का ध्यान किया, तब परमेश्वर ने संतों के लिये जलेबी भेज दी ।
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दादूजी का उक्त वचन सुन कर सब शिष्य स्नान करके सरोवर के तट पर ही आसन लगा कर ध्यान करने लगे, फिर ध्यान करके ज्यों ही दादूजी के शिष्यों ने नेत्र खोले तो सरोवर के मध्य से एक छाव आती दिखाई दी ।
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वह छाव शनैः शनैः दादूजी जहां तट पर विराजे हुये थे उधर ही जा रही थी किसी शिष्य ने दादूजी के पास जाकर कहा - स्वामिन् ! एक छाव आपकी ओर आ रही है । इतने में ही वह दादूजी के पास आ ही गई । उसमें गर्म-गर्म जलेबियां भरी हुई थीं ।
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उसे देखकर दादूजी ने कहा - लो संतों ! प्रभु ने तुम्हारी इच्छा के अनुसार तुम्हारे लिये गर्म-गर्म जलेबियां भेज दी हैं । अब इच्छानुसार पावो तब संतों ने पंक्ति लगाकर रुचि अनुसार जलेबियों का भगवत् प्रसाद पाया । वे अद्भुत रस से युक्त थीं । उनके स्वाद का वे संत वर्णन भी नहीं कर सके ।
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सब के तृप्त होने पर भी जलेबियां बहुत बच गई, तब दादूजी ने छाव को पुनः सरोवर में ही छोड़ दिया । वह थोड़ी दूर जाकर जल में डूब गई । उनके पाने से संतों को परम तृप्ति की प्राप्ति हुई । दादूजी से संतों ने पूछा - जलेबी किसने भेजी थी ? दादूजी ने कहा - हरि प्रेरणा से ही ऋद्धि आई थी ।
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फिर जग्गाजी ने प्रसन्न मन होकर कहा -
"दादू दीन दयालु सा, सद्गुरु मिला न कोय ।
जंगल में मंगल किया, सहज महोत्सव होय ॥"
जिस भगवान् की दासी रूप सिद्धि ने भारद्वाज मुनि के यहां समाज के सहित भरत को जिमाया था, कबीर के द्वार पर बालद लाकर डाली थी, उसी सिद्धि ने हरि की आज्ञा से वरुण देवता(जल के) द्वारा जलेबी भेजकर दादूजी के शिष्यों को जलेबियों द्वारा तृप्त किया था ।
(क्रमशः)

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