शनिवार, 16 जनवरी 2016

= १८२ =

卐 सत्यराम सा 卐
केते मर मांटी भये, बहुत बड़े बलवन्त ।
दादू केते ह्वै गये, दाना देव अनन्त ॥ 
दादू धरती करते एक डग, दरिया करते फाल ।
हाकों पर्वत फाड़ते, सो भी खाये काल ॥ 
============================

------------- राजा भोज -------------

भोज उज्जैन(मालवा प्रान्त में) के बड़े धर्मनिष्ठ राजा थे बचपन में ही इनके पिता महाराज का देहांत हो गया था। वे अपने पुत्र भोज का हाथ अपने भाई मुञ्ज, जो भोज का चाचा लगता था, के हाथ दे गए थे। पहले मुञ्ज के मन में कुमार भोज के प्रति बड़ा स्नेह था, किंतु किसी ज्योतिषी से भोज का सौभाग्य सुनकर तथा पाठशाला में उनकी महिमा जानकर और स्वयं भी उसकी प्रतिभा को देखकर वह उससे ईर्ष्या करने लगा। मुञ्ज ने यह सोचकर कि आगे चलकर कहीं भोज राजगद्दी न ले ले, उसने कुमार भोज को मंत्रियों के साथ वन भेज दिया और उन मंत्रियों से कह दिया कि इसका सिर काटकर लाना। 

वन जाकर मंत्रियों ने जब भोज का सिर काटना चाहा, तब उनसे सारी स्थिति को जानकर भोज ने अपने चाचा मुञ्ज के नाम अपने खून से एक श्लोक लिखा, जिसका अर्थ इस प्रकार है ---

"सत्युग के राजा मांधाता, त्रेता के श्रीराम और द्वापर के युधिष्ठिर आदि अनेक प्रतापी राजा काल के गाल में चले गए, परन्तु पृथ्वी किसी के साथ नहीं गई, अब कलियुग में स्यात चाचा मुञ्ज के साथ चली जाए।" 

इस ज्ञानमय श्लोक को पढ़कर वे मंत्री बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने भोज को न मारकर उसे कहीं छिपा दिया। उन्होंने कोई नकली सिर काटकर राजा मुञ्ज के पास ले जाकर दिखा दिया तथा वह श्लोक भी दिखलाया। उस श्लोक को पढ़कर मुञ्ज रोने और पश्चाताप करने लगा, यहां तक कि स्वयं मरने को तैयार हो गया। 

तब मंत्रियों ने सब सच बात बता दी और कुमार भोज को लाकर मुञ्ज को सौंप दिया। मुञ्ज ने भोज से क्षमा मांगी और उसे राजगद्दी देकर स्वयं वैराग्यवान हो गया। 
राजा भोज संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान थे। 

सौजन्य -- बीजक रमैनी !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें