रविवार, 17 जनवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/१३-५)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
= श्री गुरुदेव का अँग १ =
.
दादू काढ़े काल मुख, अँधे लोचन देय ।
दादू ऐसा गुरु मिल्या, जीव ब्रह्म कर लेय ॥१३॥
सद्गुरु काम - वृत्ति से अँध हुये को, उपदेश द्वारा स्त्री - पुरुषों के शरीरों में परस्पर मल - मूत्रादि का दर्शन कराना रूप वस्तु - विचार - नेत्र प्रदान करके काम - काल के मुख से निकाल देते हैं । हमें तो ऐसे ही गुरु प्राप्त हुये हैं जो जीव को ब्रह्म बना देते हैं ।
.
दादू काढ़े काल मुख, श्रवणहुं शब्द सुनाय ।
दादू ऐसा गुरु मिल्या, मृतक लिये जिलाय ॥१४॥
जो क्रोध - प्रधान वृत्तियों से मृतक - तुल्य सँज्ञा - हीन हो जाते था, ऐसे मनुष्यों के भी श्रवणों में गुरुजनों ने क्षमा - प्रधान शब्द सुना के उनको क्रोध - काल के मुख से निकाल कर शाँति मय जीवन दिया है । हमको तो ऐसे ही गुरु मिले हैं, जिन्होंने मरण - धर्मवालों को ब्रह्म प्राप्ति द्वारा सदा के लिए जीवित कर दिया है ।
.
दादू काढ़े काल मुख, गूँगे लिये बुलाइ ।
दादू ऐसा गुरु मिल्या, सुख में रहे समाइ ॥१५॥
जो लोभ - प्रधान वृत्तियों द्वारा गूँगे हो रहे थे, दीन - गरीब - भिक्षु आदि के भोजनादि सहायता माँगने पर भी नहीं बोलते थे । उन लोगों को गुरुजनों ने उपदेश द्वारा धनादि की नश्वरता निश्चय कराकर पर - उपकारार्थ बोल ने वाला बना दिया तथा सँतोषी बनाकर लोभ - काल के मुख से निकाल दिया । हमको तो ऐसे ही गुरु मिले हैं जिनके उपदेश से हम परम सुख में समा रहे हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें