卐 सत्यराम सा 卐
राम नाम जनि छाड़े कोई,
राम कहत जन निर्मल होई ॥ टेक ॥
राम कहत सुख संपति सार,
राम नाम तिर लंघे पार ॥ १ ॥
राम कहत सुधि बुधि मति पाई,
राम नाम जनि छाड़हु भाई ॥ २ ॥
राम कहत जन निर्मल होई,
राम नाम कहि कश्मल धोई ॥ ३ ॥
राम कहत को को नहिं तारे,
यहु तत दादू प्राण हमारे ॥ ४ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! राम नाम के स्मरण को हृदय से कोई भी नहीं त्यागना, क्योंकि राम नाम का स्मरण करने से, हे जनों ! अन्तःकरण निर्मल होता है । राम का स्मरण करने से सब प्रकार के सुख, दैवी सम्पदा की सार सम्पत्ति रूप गुण प्राप्त होते हैं । राम नाम के स्मरण से संसार समुद्र से पार हो जाते हैं । राम नाम के स्मरण करने से ही, बुद्धि शुद्ध होकर, ब्रह्म अनुसरणी बनती है । इसलिये हे भाई ! राम नाम के स्मरण का कोई भी त्याग नहीं करना । राम का स्मरण करने वाले जन, निर्मल, पाप रहित होते हैं । राम का स्मरण करने वालों को राम ने, सभी को तारा है । ब्रह्मऋषि कहते हैं कि राम नाम रूपी तत्व हमें हमारे प्राणों से भी प्रिय है ।
इन दोउ जन में सिरह, सो जो हरि में रहै समाइ ।
कहि जगजीवन लीन मन, आनन्द अंग नमाइ ॥ २ ॥
सात पहर सुमरण करै, एक पहर कृत देह ।
कहि जगजीवन बंदगी, परम पुरुष से नेह ॥ २ ॥
एक पहर सुमरण करै, सात पहर सतसंग ।
कहि जगजीवन बंदगी, हरि से लागा रंग ॥ २ ॥
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