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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ प्रथम उल्लास =*
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*मनहर*
*गुरु के प्रसाद बुद्धि उत्तम दशा कौं ग्रहै,*
*गुरु के प्रसाद भव दु:ख बिसराइये ।*
*गुरु के प्रसाद प्रेम प्रीति हू अधिक बाढ़ै,*
*गुरु के प्रसाद राम नाम गुन गाईये ॥*
*गुरु के प्रसाद सब योग की युगति जानै,*
*गुरु के प्रसाद शून्य मैं समाधि लाइये ।*
*सुन्दर कहत गुरुदेव जौ कृपाल हौंहिं,*
*तिनके प्रसाद तत्व ज्ञान पुनि पाइये ॥१२॥*
गुरु की प्रसन्नता से ही मनुष्य सद्बुद्धि तथा उत्तम स्थिति प्राप्त कर सकता है तथा उनकी प्रसन्नता प्राप्त करके ही वह सांसारिक दु:खजाल से मुक्ति पा सकता है ।
गुरु का स्नेह मिलने पर ही जिज्ञासु का भगवान् में प्रेम और लगाव बढ़ता है और वह भगवदगुणगान में प्रवृत्त हो पाता है ।
गुरु के प्रसाद से ही वह योगशास्त्र में बताये चित्तवृत्तिनिरोध का उपाय जान पाता है तथा उनकी कृपा से ही वह शून्य समाधि में लीन होने की स्थिति में पहुँच सकता है ।
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - यदि गुरुदेव शिष्य पर वस्तुतः कृपालु हो जाँय तो वह उनकी कृपा से तत्वज्ञान को बहुत ही सरलता से पा सकता है ॥१२॥
(क्रमशः)
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