सोमवार, 18 जनवरी 2016

= विन्दु (१)६२ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*= विन्दु ६२ =*
*= हिन्दौण प्रसंग, शिष्य चरणदास, मोहन दरियाई =*
.
करोली से प्रस्थान करके दादूजी अपने शिष्यों के साथ हिन्दौण नगर की ओर चले और हरि चिन्तन करते हुये शनैः शनैः हिन्दौन के पास पहुंच गये और नगर के बाहर कुछ दूर पर एक स्थान में ठहर गये । हिन्दौण नगर की जनता को दादूजी के आने की सूचना दादूजी के आने से पहले ही मिल गई थी कि दादूजी हिन्दौण पधारेंगे । इससे वहां की भक्त जनता दादूजी की प्रतीक्षा ही कर थी ।
.
दादूजी पधार गये और अमुक स्थान में ठहरें हैं यह सुनकर भावुक भक्त जनता दादूजी के दर्शनों के लिये उमड़ पड़ी । हिन्दौण की जनता को यह भी ज्ञात था कि दादूजी और उनके सब शिष्य संत एक ही समय मध्यान्ह में ही भिक्षा करते हैं । इससे भावुक भक्त भिक्षा भी साथ ही ले गये । दादूजी के दर्शन करने से भक्तों को अति आनन्द हुआ । उन्होंने संतों को भिक्षा कराकर विश्राम करने के पश्चात् सत्संग से महान् लाभ उठाया ।
.
*= शिष्य चरणदास =*
हिन्दौण में एक चरणदास वैरागी रहते थे । वे साधक थे, अपनी पद्धति के अनुसार तो वे साधन करते थे किंतु अभी तक उनको संतोष नहीं हुआ था । उन्होंने भी दादूजी का नाम सुना था तब वे दादूजी के पास आये और प्रणाम करके बोले - भगवन् ! बहुत समय से ठाकुर सेवा करता हूं किंतु मुझे अभी तक न संतोष है और न शांति है । अतः आप मुझे परम शांतिप्रिय मुक्ति का मार्ग बताने की कृपा अवश्य करें । दादूजी चरणदासजी की बात सुनकर समझ गये, यह जिज्ञासु है, इससे यथार्थ उपदेश के अधिकारी है ।
.
अतः दादूजी ने चरणदासजी की स्थिति पहचान कर यह पद कहा -
"साँचा राम न जाणे रे, सं झूठ बखाणेरे ॥टेक॥
झूंठे देवा झूंठी सेवा, झूंठा करे पसारा ।
झूंठी पूजा झूंठी पाती, झूंठा पूजण हारा ॥१॥
झूंठा पाक करे रे प्राणी, झूंठा भोग लगावे ।
झूंठा आड़ा पड़दा देवे, झूंठा थाल बजावे ॥२॥
झूंठे वक्ता झूंठे श्रोता, झूंठी कथा सुनावे ।
झूंठा कलियुग सबको माने, झूंठा भरम दृढ़ावे ॥३॥
स्थावर जंगम जल थल महियल, घट घट तेज समाना ।
दादू आतम राम हमारा, आदि पुरुष पहचाना ॥४॥"
.
सांसारिक सभी अज्ञानी प्राणी सत्य स्वरूप राम को नहीं जानते, मिथ्या का ही कथन करते रहते हैं । उनके देव, सेवा का सब फैलाव, पूजा, पात्रादिक सब मिथ्या से रचित ही होते हैं । पुजारी का ह्रदय भी माया से ही प्रभावित होता है । प्राणी मिथ्या पदार्थों के पाक बनाते हैं, मिथ्या पड़दा लगाते हैं और मिथ्या ही भोग लगाकर मिथ्या ही थाल बजाते हैं ।
.
कर्त्तव्य शून्य झूंठे वक्ता झूंठी ही कथा सुनाते हैं तथा धारण शून्य झूंठे श्रोता सुनते हैं । झूंठे कलियुगी प्राणी सबप्रकार मिथ्या को ही मानते हैं और अन्यों को भी मिथ्या भ्रम ही दृढ़ कराते हैं किन्तु हमने तो जल, स्थल तथा पृथ्वी के स्थिर और चलने वाले सभी प्राणियों के घट-घट में जो आदि पुरुष चेतन तेज समाया हुआ है, उसी को पहचाना है ।
.
वह राम ही हमारा आत्म स्वरूप है । यदि आप भी सत्य स्वरूप निर्गुण ब्रह्म के भजन में लग जायें तो निश्चित संतोष और परम शांति प्राप्त हो सकती है । मेरा तो यही अनुभव है । आप भी अनुभव कर सकते हैं ।
.
फिर चरणदासजी दादूजी महाराज के शिष्य हो गये और कुछ दिन दादूजी के साथ रहकर दादूजी की निर्गुण ब्रह्म भक्ति का अभ्यास किया फिर साधन में जब कोई भी संशय नहीं रहा तब दादूजी महाराज से आज्ञा मांगकर तथा साष्टांग दंडवत करके चले गये और रणथम्भौर में भजन करते हुये रहने लगे । आप का स्थान रणथम्भौर ही माना जाता है । आप दादूजी के ५२ शिष्यों में हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें