रविवार, 17 जनवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(प्र. उ. १०-१) =

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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ प्रथम उल्लास =*
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*गुरुदेव की दुर्लभता + चौपाईया*
*गुरुदेव बिना नहिं मारग सूझय,*
*गुरु बिन भक्ति न जांनै ।*
*गुरुदेव बिना नहिं संशय भागय,*
*गुरु बिन लहै न ज्ञांनै ॥* 
*गुरुदेव बिना नहिं कारज होई,*
*लोक बेद यौं गावै ।*
*गुरु बिन नहिं सदगति कोई,*
*गुरु गोबिन्द बतावै ॥१०॥*
अब श्रीसुन्दरदासजी गुरुदेव की दुर्लभता का वर्णन आरम्भ करते हैं - गुरुदेव की कृपा के बिना मोक्षप्राप्ति का उपाय नहीं सूझता, उनकी कृपा के बिना भक्तिमार्ग का ज्ञान भी नहीं हो पाता । गुरु के बताये विना द्वैत भ्रम नहीं मिट सकता, और गुरु के बिना ज्ञानप्राप्ति नहीं हो सकती । गुरु के मिले बिन हमारा कोई कार्य सिद्ध नहीं हो सकता - ऐसा वेद तथा लोक के प्रमाणिक वचनों में सिद्ध हैं । गुरु के बिना प्राणी की सद्गति नहीं हो सकती; क्योंकि एक गुरुदेव ही ऐसे हैं जो भगवत्प्राप्ति का सरल उपाय बता सकते हैं ॥१०॥
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*त्रोटक +* 
*गुरुदेव बिना नहिं भाग्य जगै ।*
*गुरुदेव बिना नहिं प्रीति लगै ।*
*गुरुदेव बिना नहिं शुद्ध हृदं ।*
*गुरुदेव बिना नहिं मोक्ष पदं ॥११॥*
गुरु की कृपा के विना मानव का भाग्योदय नहीं हो सकता, न उसकी कृपा के बिना भगवान् के चरणों में उसकी प्रीति हो सकती है । गुरु के बिना मानव का हृदय शुद्ध(निर्विकार) नहीं हो सकता, और न गुरुकृपा के बिना कोइ प्राणी मोक्ष पद ही प्राप्त कर सकता है ॥११॥
(क्रमशः)

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