सोमवार, 18 जनवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/१६-८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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दादू काढ़े काल मुख, महर दया कर आइ ।
दादू ऐसा गुरु मिल्या, महिमा कही न जाइ ॥१६॥
जो मोह की प्रधानता से बारँबार जन्मते मरते थे, उनको भी अपनी शरण आने पर गुरुजनों ने दया - कृपा करके ब्रह्म - ज्ञान - उपदेश द्वारा मोह - काल के मुख से निकाल लिया है । हमको तो ऐसे ही गुरु प्राप्त हुये हैं जिनकी महिमा वाणी से किसी प्रकार भी नहीं कही जा सकती ।
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सद्गुरु काढ़े केश गहि, डूबत इहि सँसार ।
दादू नाव चढाइ कर, कीये पैली पार ॥१७॥
हम सकाम - कर्मों द्वारा इस सँसार - समुद्र में बारँबार डुबकियाँ लगा रहे थे, दयालु गुरुदेव ने हमारे सकाम कर्म - केश पकड़ कर अर्थात् निष्काम भाव से कर्म करने का उपदेश देकर हमें शुद्ध बनाया और आत्म - ज्ञान - नौका पर चढ़ाकर सँसार - सागर से पार कर दिया ।
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भव - सागर में डूबताँ, सद्गुरु काढ़े आइ ।
दादू खेवट गुरु मिल्या, लीये नाव चढ़ाइ ॥१८॥
हम सँसार - समुद्र में डूब रहे थे, भाग्यवश हमें गुरु - केवट मिल गये और उन्होंने हमारी स्थिति देखकर, हमें अपने उपदेश - हाथों से निकाल कर ईश्वर नाम चिन्तन - नौका में चढ़ा लिया है, अब हम नहीं डूब सकेंगे ।
(क्रमशः)

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