शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

= १७९ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू सहजैं सहजैं होइगा, जे कुछ रचिया राम ।
काहे को कलपै मरै, दुःखी होत बेकाम ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya ~
गुरुत्वाकर्षण से कोई प्रार्थना नहीं करता
बुद्ध ने उसी को धर्म कहा है, जिसको दूसरों ने ईश्वर कहा है। बुद्ध ने उसी को धर्म कहा है, जिसको दूसरों ने आत्मा कहा है। लेकिन आत्मा और ईश्वर के साथ ज्यादा खतरा है। धर्म के साथ उतना खतरा नहीं है।
ईश्वर का मतलब हो जाता है : कोई बैठा है आकाश में, चला रहा है सारे जगत जीने की कला को। चलो, इसकी खुशामद करें, स्तुति करें। इसको प्रसन्न कर लें किसी तरह, तो अपने लिए कुछ विशेष आयोजन हो जाएगा। अपने पर दया हो जाएगी। इसकी अनुकंपा अपने को मिल जाए, तो हम दूसरों से आगे निकल जाएंगे—धन में, ध्यान में। तो हमारी जो मांगें हैं, हम इससे पूरी करवा लेंगे। चलो इसके पैर दबाएं। चलो, इससे कहें कि हम तुम्हारी चरण—रज हैं।
तो दिशा गलत हो गयी। दिशा वासना की हो गयी। ईश्वर को मानते ही कि ईश्वर आकाश में बैठा है मनुष्य की भांति, स्वभावत: तो जो मनुष्य की कमजोरियां हैं, वे ईश्वर में भी आरोपित हो जाएंगी।
मनुष्य को खुशामद से राजी किया जा सकता है, तो ईश्वर को भी खुशामद से राजी किया जा सकता है। अगर मनुष्य को खुशामद से राजी किया जा सकता है, तो ईश्वर को थोड़ी और सुंदर खुशामद चाहिए; उसका नाम स्तुति! अगर मनुष्य को रिश्वत दी जा सकती है, तो ईश्वर को भी रिश्वत दी जा सकती है। जरा देने में ढंग होना चाहिए; जरा कुशलता और प्रसादपूर्वक। और अगर आदमी से अपनी मांगें पूरी करवायी जा सकती हैं, चाहे वे न्यायसंगत न भी हों, तो फिर ईश्वर से भी पूरी करवायी जा सकती हैं।
तुम चकित होओगे. दुनिया के धर्म—शास्त्रों में ऐसी प्रार्थनाएं हैं, जो कि धर्म —शास्त्रों में नहीं होनी चाहिए। अधार्मिक प्रार्थनाएं हैं। मगर वे सूचक हैं, इस बात की कि अगर ईश्वर को मनुष्य की तरह मानोगे, तो यह उपद्रव होने वाला है।
वेद में ऐसी सैकड़ों ऋचाएं हैं, जिनमें प्रार्थना कर रहे हैं ऋषि कि हमारे दुश्मन को मार डालो! यहीं तक नहीं, हमारी गाय के थन में दूध बढ़ जाए और दुश्मन की गाय के थन में दूध बिलकुल सूख जाए। ये किस तरह की प्रार्थनाएं हैं! कि हमारे खेत में इस बार खूब फसल आए और पड़ोसी का खेत बिलकुल राख हो जाए। ये किस तरह की प्रार्थनाएं हैं! और वेद में!
ईश्वर की जगह नियम को स्थापित किया बुद्ध ने धर्म में। अब नियम से कोई प्रार्थना थोड़े ही कर सकते हो। किसी को तुमने गुरुत्वाकर्षण से प्रार्थना करते देखा—कि आज जरा घर के बाहर जा रहा हूं; हे गुरुत्वाकर्षण! रास्ते पर गिरा मत देना! टांग मत तोड़ देना! क्योंकि और लोगों के, कई के फ्रैक्चर हो गए हैं; मुझे न हो यह। देखो, मैं तुम्हारा भक्त हूं!
गुरुत्वाकर्षण से कोई प्रार्थना नहीं करता। करेगा, तो मूढ़ मालूम पड़ेगा। खुद की ही आंखों में मूढ़ मालूम पड़ेगा। लेकिन एक दफा गुरुत्वाकर्षण को भी आदमी का रूप दे दो, कि गुरुत्वाकर्षण जो है वह एक देवता है, जो देखता रहता है कि कौन ठीक चल रहा है, कौन ठीक नहीं चल रहा है। जो इरछा—तिरछा चलता है, उसको गिराता है। दे मारता है। हड्डी तोड़ देता है। अस्पताल में भर्ती करवा देता है। जो सीधा चलता है, सधकर चलता है, सम्हलकर चलता है, उसको बचाता है।
यही तो है। बादल आकाश में गरजे; तुमने कल्पना कर ली इंद्र देवता की—कि नाराज हो रहा है इंद्र देवता! हमसे कुछ भूल हो गयी।...osho

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