शनिवार, 16 जनवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/१०-२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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सद्गुरु कीया फेरि कर, मन का औरे रूप ।
दादू पँचों पलट कर, कैसे भये अनूप ॥१०॥
सद्गुरु ने मन को साँसारिक विषय - वासना से भगवान् की ओर फेरकर भगवत् - परायणता द्वारा उसका रूप पूर्व से भिन्न ही कर दिया है और देखो, पँच ज्ञानेन्द्रियाँ प्रथमावस्था से बदल कर कैसी अनुपम हो गई हैं अर्थात् पहले अपने विषयों का ही अनुभव करती थीं किन्तु अब विषयों में उनके अधिष्ठान ब्रह्म का अनुभव करती हैं ।
साचा सद्गुरु जे मिले, सब साज१ संवारे ।
दादू नाव चढाय कर, ले पार उतारे ॥११॥
यदि सच्चे सद्गुरु मिल जाते हैं, तो मन इन्द्रियादि सभी सामग्री१ को सुधार कर भगवत् परायण कर देते हैं । फिर आत्म - ज्ञान - नौका पर बैठा कर सँसार से पार कर देते हैं ।
सद्गुरु पशु माणस करे, माणस तैं सिध सोइ ।
दादू सिध तैं देवता, देव निरंजन होइ ॥१२॥
सद्गुरु उपदेश द्वारा पशु तुल्य पामर मनुष्य को मानवता के लक्षणों से सम्पन्न करके वास्तविक मनुष्य बना देते हैं और वह मनुष्य सद्गुरु के बताये हुये योग - साधन द्वारा सिद्ध हो जाता है । सिद्धावस्था की परिपाकावस्था में वही दिव्य गति वाला, अर्थात् दूसरों के मन की बात को जानने वाला देवता हो जाता है और देव भाव की परिपाकावस्था में वही निरंजन ब्रह्म हो जाता है ।
(क्रमशः)

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