सोमवार, 11 जनवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(प्र. उ. १) =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली 
साभार~ गुरुवर्य महंत महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
.
**श्रीपरमात्मने नमः * श्रीदादूदयालवे नमः * श्रीसजद्यो नमः**
*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ प्रथम उल्लास =*
.
*नमस्कारात्मक मंगलाचरण*
*छप्पय छंद*
*प्रथम१ बंदि परब्रह्म, परम आनंद स्वरुपं ।*
*दुतिय बंदि गुरुदेव, दियौ जिह ज्ञान अनूपं ॥*
*त्रितिय बंदि सब संत, जोरि कर तिनके आगय ।*
*मन वच काय प्रणाम, करत भय भ्रम सब भागय ॥*
*इहिं भाँति मंगलाचरण करि, सुन्दर ग्रंथ बखानिये ।*
*तंह विघ्न न कोऊ उप्पजय, यह निश्चय करि मानिये ॥१॥*
(ग्रन्थकर्ता स्वामी सुन्दरदासजी महाराज अद्वैत निर्गुणमतावलम्बी सन्तों की शैली में ग्रन्थ के आरम्भ में नमस्कारात्मक मंगलाचरण२ कर रहे हैं - )
मैं सर्वप्रथम सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मरूप इष्टदेव को प्रणाम करता हूँ; दूसरे जिनने मुझको अनुपम ज्ञान दिया है उन गुरुदेव को प्रणाम करता हूँ; पुनः तीसरे, भूत भविष्य वर्तमान के सब सन्तों को प्रणाम करता हूँ तथा उनके आगे हाथ जोड़ कर नतमस्तक होता हूँ; क्योंकि इन तीनों को मन, वाणी और शरीर द्वारा किया हुआ ऐसा प्रणाम सभी प्रकार के सांसारिक भय एवं द्वैत के भ्रम को नष्ट कर देता है ।
इस प्रकार श्रीसुन्दरदासजी इष्टदेव, गुरुदेव तथा सन्तों को प्रणामरूप मंगलाचरण कर इस ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ की रचना प्रारम्भ कर रहे हैं । इस विधि से ग्रन्थ-रचनारूपी कार्य में कोइ विघ्न उत्पन्न नहीं होता - ऐसा निश्चित समझना चाहिये ॥१॥
(यह प्रणाम प्रथा सनातन धर्मावलम्बियों में आरम्भ से ही रही है । सभी वैदिक ऋषियों, बौद्धों तथा नाथों ने यह प्रथा अपनी अपनी पध्दति से स्वीकार की है ।)
[१. इस छप्प्य छन्द का पहला शब्द 'प्रथम' नगण(। । ।) है, अतः शुभ है । नगण का नाग देवता है, जो पिंगल(छन्द:शास्त्र) का आचार्य हुआ है । और नगण का फल सुख है । लोक इसका स्वर्ग है तथा ब्राह्मण जाति है । इस प्रकार ग्रन्थ का प्रारम्भ हुआ है । शास्त्र में छप्प्य छन्द के ७१ भेद बताये है । उनमें यहाँ यह ११८ अक्षर का होने से 'पयोधर' नामक छप्प्य है ।
२. शास्त्र में त्रिविध मंगलाचरण माने गये हैं - (क)वस्तुनिर्देशात्मक, (ख)नमस्कारात्मक एवं (ग)आशीर्वादात्मक ।]
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें