卐 सत्यराम सा 卐
दादू विरह अग्नि में जल गये, मन के मैल विकार ।
दादू विरही पीव का, देखेगा दीदार ॥
विरह अग्नि में जल गये, मन के विषय विकार ।
ताथैं पंगुल ह्वै रह्या, दादू दर दीदार ॥
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साभार ~ ऊँ नारायण ~
बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख............ जरूर पढ़े।
इस दूध को अब हमें उबालना है. दूध तो अग्नि पर ही उबलता है इसी तरह ये गीतारूपी दुध भी विरहअग्नि में उबलता है, जाबालि नाम के एक ऋषि थे ब्रह्मविद्या प्राप्त कर ली सोचने लगे ज्ञान का अंतिम लक्ष्य यही है और मैंने इसे प्राप्त कर लिया, एक दिन एक पर्वत पर गए देखा एक सुन्दर युवती तप में लगी हुई है बोले - आप कौन हो? और तप क्यों कर रही हो ?
युवती बोली - मै ब्रह्मविद्या हूँ, और व्रज में गोपी रूप में जन्म हो इसलिए तप कर रही हूँ, ऋषि को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ब्रह्म विद्या को प्राप्त करने के लिए लोग वर्षों तप करते है, क्या ब्रह्म विद्या से भी आगे कुछ है? जो ये तप कर रही है आज पता चला.
बोले क्यों गोपी बनना है? ब्रह्मविद्या बोली - ऐसे ज्ञान का क्या लाभ जहाँ ब्रह्म को तो पा लिया पर सगुण साकार रूप में प्रत्यक्ष लीला करते तो गोपिया ही देखती है वे मिलन और विरह का आनंद लेती है, मैं भी कृष्ण विरह चाहती हूँ, तब ऋषि भी तप में लग गए और व्रज में गोपी रूप में अवतरित हुए. अर्थात विरह प्रेमी जनों का सबसे बड़ा धन है.
जब विरह अग्नि में उबाल लिया हमने ज्ञान को, फिर जमाना है अर्थात उस विरह में स्थिरता लानी है. फिर जामन डालना है गोपी जामन डालती है,गोपी कौन ? जो प्रत्येक इंद्रिय से नित्य बिहार के रस को पिए, देखो जामन तो थोडा सा ही डालते है, पर उसका प्रभाव बहुत होता है. इसी तरह जो भगवत रस को जानता है उसी गुरु से जामन डलवाओ और जामन क्या है - वो है "गुरुमंत्र", जो होता तो बहुत छोटा है पर उसका प्रभाव बहुत होता है.
फिर जल छोड़ा जाता है, अर्थात प्रेमरूपी जल छोडो, फिर विचारों की मथानी डालकर मथना शुरू करो, सारी चीजे नीचे बैठ जायेगी और माखन ऊपर आ जायेगा, माखन का अर्थ होता है "मा" अर्थात क्रोध और "खन" अर्थात नहीं चित्त में क्रोध नहीं, जब चित्त अत्यंत प्रेममयी हो जाता है तब ऐसे चित्त को कृष्ण चुराते है।
नारायण नारायण
लक्ष्मीनारायण भगवान की जय
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