मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/५२-४)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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दादू घायल हो रहे, सद्गुरु के मारे ।
दादू अँग लगाय कर, भवसागर तारे ॥५२॥
जब हम सद्गुरु के मारे हुये वैराग्य पूर्ण वचन - बाणों से घायल हो रहे थे, विषय मिथ्या हैं यह निश्चय होने से तथा भगवत् तत्व प्राप्त न होने से दु:ख हो रहा था, उसी अवस्था में सद्गुरु ने हमें अपने प्रिय ब्रह्म स्वरूप में अभेद रूप से लगाकर सँसार - समुद्र से तार दिया ।
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दादू साचा गुरु मिल्या, साचा दिया दिखाइ ।
साचे को साचा मिल्या, साचा रह्या समाइ ॥५३॥
हमें ब्रह्मनिष्ठ सच्चे गुरु प्राप्त हुये हैं और हमको भी उपदेश द्वारा सत्यब्रह्म का साक्षात्कार कराया है । अज्ञानादि दोषों से रहित सत्य स्वरूप आत्मा को सत्य ब्रह्म की प्राप्ति हो गई तब वह सत्य ब्रह्म में ही एक रूप से समा गया है ।
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साचा सद्गुरु सोधि ले, साचे लीजे साध ।
साचा साहिब सोधि कर, दादू भक्ति अगाध ॥५४॥
प्रथम ब्रह्मनिष्ठ सच्चे सद्गुरु की खोज कर, फिर सद्गुरु और सच्चे सँतों के संग से साधन का ज्ञान प्राप्त कर ले, पश्चात् विचार द्वारा परमात्मा का स्वरूप निश्चय करके उनकी अखँड भक्ति करे ।
(क्रमशः)

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