मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

= विन्दु (२)६७ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= अथ विन्दु ६७ =*
*= शिष्य माखूजी, तुर्क को उपदेश तथा माधवदासजी की ज्वार भेंट =*
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दादूजी महाराज का नाम सुनकर आमेर में एक दिन माखू नामक एक व्यक्ति दादू जी के दर्शन करने आये और अति श्रद्धा-भक्ति से प्रणाम करके हाथ जोड़े हुये सामने बैठ गये फिर अवसर देखकर बोले - स्वामिन् ! संसार में रहते हुऐ प्राणी को सुख कैसे मिल सकता है ?
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दादूजी ने कहा - एकात्म भाव से संसार में रहते हुए भी सुख प्राप्त हो सकता है । माखू ने कहा - भगवन् ! जब प्रत्यक्ष में सब भिन्न भास रहे हैं, तब एकात्मभाव कैसे हो सकता है ?
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तब दादूजी ने यह पद कहा -
बाबा कहु दूजा क्यों कहिये, तातै इहि संशय दुख सहिये ॥टेक॥
यहु मति ऐसी पशुवाँ जैसी, काहे चेतन नाँहीं ।
अपना अंग आप नहिं जाने, देखे दर्पण माँहीं ॥१॥
इहिं मति मीच मरण के ताँई, कूप सिंह तहं आया ।
डूब मुवा मन मरम न जाना, देख आपनी छाया ॥२॥
मद के माते समझत नांहीं, मैगल१ की मति आई ।
आपहि आप आप दुख दीया, देख आपणी झाँई ॥३॥
मन समझे तो दूजा नांहीं, बिन समझे दुख पावे ।
दादू ज्ञान गुरु का नांहीं, समझ कहां तैं आवे ॥४॥
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बाबा ! कहो द्वैत क्यों कहा जाय द्वैत के कहने से ही तो इस संसार में संशय जन्य क्लेश सहा जाता है । यह द्वैत बुद्धि पशुओं की बुद्धि के समान है । इससे क्यों नहीं सावधान होता ? श्वान दर्पण में देखता है तब अपने शरीर को भी नहीं पहचानता और भूंक-भूंक कर मर जाता है । इस भेद बुद्धि से ही तो शशक के कहने पर मृत्यु के वश होकर मरणे के लिये वहां कूप पर सिंह आया और अपनी ही छाया को देखकर अपने मन में उस रहस्य को न जान सका, इसलिए कूप में कूदकर डूब मरा ।
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मद से मस्त हाथी१ समझता नहीं तब ही चमकीले पथेर में अपनी ही छाया को देख, दूसरा हाथी जानकर, उस पर आघात करके अपने आप ही अपने को दुःख देता है, वैसे ही हाथी की सी द्वैत बुद्धि आने पर प्राणी अपने आप को ही दुःखी कर लेता है । मन में समझे तो द्वैत है ही नहीं किंतु बिना ही समझे दुख पाते हैं । जब गुरु का ज्ञान सुनते ही नहीं तब समझ कहां से आवे ।
(क्रमशः)

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