सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

= २८ =

卐 सत्यराम सा 卐
कहतां, सुनतां, देखतां, लेतां, देतां प्राण ।
दादू सो कतहुँ गया, माटी धरी मसाण ॥ 
सींगी नाद न बाजहि, कत गये सो जोगी ।
दादू रहते मढी में, करते रस भोगी ॥ 
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कबीर जंत्र न बाजई, टूट गए सब तार। 
जंत्र बिचारा क्या करे, चला बजावन हार ॥ 
कबीरदास कहते हैं कि यह यंत्र(वाद्य यंत्र, सितार) अब नहीं बजेगा। क्योंकि इसके सभी तार टूट गए हैं। यह यंत्र तो ठीक भी हो जायेगा किंतु वह यंत्र विचारा क्या करे जिसका बजावनहार(सितार बजानेवाला) ही चला जाए। 
अर्थात यह शरीर प्राण निकलने के पश्चात किसी काम का नहीं रहता। इसे सितार की तरह ठीक नहीं किया जा सकता। 

संत कबीरदास !

सौजन्य -- १००८ कबीरवाणी ज्ञानामृत !

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