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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६८ =*
*= जहाज संतारण =*
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तब दादूजी बोले -
"राम संभालिये रे, विषम१ दुहेली२ बार ॥टेक॥
मंझ समुद्राँ नावरी रे, बूड़े खेवट बाज३ ।
काढनहारा को नहीं, एक राम बिन आज ॥१॥
पार न पहुँचे राम बिन, भेरा भव जल मांहिं ।
तारणहारा एक तू, दूजा कोई नांहिं ॥२॥
पार परोहन४ तो चले, तुम खेवहु सिरजनहार ।
भवसागर में डूब है, तुम बिन प्राण अधार ॥३॥
औघट दरिया क्यों तरे, बोहित५ वैसणहार ।
दादू खेवट राम बिन, कौण उतारे पार ॥४॥
हे राम ! यह समय कठिन१ संकट२ का है, हमारी सँभाल करो ।
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हमारी जीवन-नौका संसार समुद्र में है और केवट बिना३ डूब रही है । आज हमें निकालने वाला एक राम के बिना अन्य कोई भी नहीं दीखता ।
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हमारा जीवन बेड़ा संसार-समुद्र के विषय जल में रुक रहा है, राम के बिना पार नहीं पहुँच सकता । हे राम ! आप ही एक तारने वाले हैं, अन्य कोई नहीं दीखता ।
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हे सृष्टि कर्ता ! यदि आप खेवोगे तो हमारी नौका४ पार जा सकती है । प्राणाधार ! आप बिना तो भवसागर में डूबेगी ही ।
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यह संसार-सागर दुस्तर है, इससे कैसे तैरा जाय ? जीवन-जहाज५ विषय-जल में बैठने वाला ही है, राम केवट के बिना कौन पार उतारेगा ? राम ! कृपा करके पार करो ।
इस पद रूप प्रार्थना को कर के मैंने सुरति रूप शरीर के हाथ से जहाज को ऊँचा उठाया तब प्रभु की कृपा से जहाज तैर गया । जहाज के तैरते ही सबका दुःख मिट गया । यह सुन कर राजा मानसिंह ने दादूजी के चरणों में प्रणाम किया और कहा - आप तो पूर्ण संत हैं, आप की महिमा अपरंपार है । आपने तो सीकरी में बादशाह के दरबार में सब के देखते हुये तेजोमय तखत दिखा दिया था । उसको देखकर सबने आश्चर्य किया था ।
(क्रमशः)
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