रविवार, 14 फ़रवरी 2016

= ५७ =

卐 सत्यराम सा 卐
झूठे अंधे गुरु घणे, भरम दिढावैं आइ ।
दादू साचा गुरु मिलै, जीव ब्रह्म ह्वै जाइ ॥ 
झूठे अंधे गुरु घणे, बँधे विषय विकार ।
दादू साचा गुरु मिल्या, सन्मुख सिरजनहार ॥ 
झूठे अंधे गुरु घणे, भरम दिढ़ावैं काम ।
बँधे माया मोह सौं, दादू मुख सौं राम ॥ 
झूठे अँधे गुरु घणे, भटकैं घर घर बार ।
कारज को सीझै नहीं, दादू माथै मार ॥ 
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साभार ~ खाकी शाह
अंधविश्वास से बचो !
भेड़चाल से बचो ! 
प्र० - हम सदगुरु क्यों बनाते हैं ? 
उ० - भवसागर (ये संसार) से पार जाने के लिये हम सदगुरु बनाते है ।
प्र० - सच्चा सदगुरु कौन है ? उसकी पहचान क्या है ?
उ० - सदगुरु को धारने से पहले अच्छी तरह से परख लो कि जिसे हम अपना सर्वस्व सोंपने जा रहे है । क्या वे सदगुरु हैं। सवाल है कि सदगुरु कौन है ? सदगुरु की पहचान क्या है ?
पहले हम ये जान लें की सदगुरु की परीभाषा क्या है ?
सदगुरु एक सेतु(पुल/Bridge) की तरह होता है । ये तो आप जानते ही है कि सेतु क्या करता है ? उदाहरण से समझें नदी पर जो सेतु होता है वो दो किनारों को जोड़ता है जिससे हम आसानी से एक तरफ से दूसरी तरफ चले जाते है, नदी को आसानी से पार कर लेते है । अगर सेतु बीच मे टूटा हो, दूसरे किनारे से ना जुड़ा हो, तो क्या हम एक तरफ से दूसरी तरफ जा पायेंगे, क्या नदी पार कर पायेंगे ? नहीं । सदगुरु स्वयं परमात्मा है जो मनुष्य रूप में इस संसार रुपी भवसागर से पार कराने के लिये आया है, और हमें सदगुरु के रूप में मिला है । मतलब भवसागर के दो किनारे है। एक तरफ हम हैं और दूसरी तरफ परमात्मा हैं। और बीच में संसार(भवसागर) है । जो स्वयं परमात्मा नहीं है। वह गुरु हमें भवसागर से कैसे पार लगायेगा । सेतु तो बीच में ही टूटा हुआ है ।

अब प्रश्न है कि सदगुरु की पहचान क्या है ? परमात्मा ने ये सारी सृष्टि बनाई है । उसने सृष्टि में जो कुछ भी बनाया, उन सब में हमें सबसे ऊपर रखा । और इसका प्रमाण है आज का संसार । जो पहले हमें उपलब्ध नहीं था, आज है । अगर लिखने लगूंगा तो बहुत कुछ लिखना पड़ेगा ।

एक छोटे उदाहरण से समझ लें - 
मान लो कि हमारा कोई भी अगर अमरिका में है। पहले हमारी उससे बात होनी भी मुश्किल होती थी, पर आज हम उससे बात ही नही कर सकते बल्कि उसे देख भी सकते है । प्रकृति में जो भी बनाया परमात्मा ने हमारे लिये बनाया है । और बिना भेदभाव के हमें दिया है । हम मनुष्यों में जो लोग बुद्धिमान थे उन्होंने मानवता की भलाई के लिये अविष्कार किये । पर जो लोग चालाक थे धूर्त थे उन्होंने उसका व्यापार बना दिया, पैसे दो और सुविधा ले लो । पर प्रकृति में अभी भी ऐसा बहुत कुछ है, जिस पर इन लोगों का अधिकार नहीं हो पाया । जैसे हवा पानी रोशनी/प्रकाश आदि ।हवा हमें बिना किसी रुकावट के मिल रही है । पानी हमें बिना किसी रुकावट के हमें मिल रहा है। रोशनी/प्रकाश हमें सुर्य के द्वारा बिना रुकावट के मिल रहा है ।

मेरे ख्याल में आप बहुत कुछ समझ गये होंगे । अब बात सदगुरु की पहचान की हो रही थी कि हम कैसे पहचानें की सच्चा सदगुरु कौन है ? हम कैसे पहचानें ? 
मेरे गुरुदेव मुनि हरमिलापी जी कहते हैं कि मंच पर बोलना कला है, वक्ता का निजी जीवन कैसा है ये देखना चाहिये।
सदगुरु की पहचान -
झूठा गुरु अपने शिष्य की संपत्ति देखता है ।
सदगुरु शिष्य की अध्यात्मिक जिज्ञासा देखता है ।
झूठा गुरु अपने शिष्य की संसारिक उन्नति देखता है ।
सदगुरु अपने शिष्य की अध्यात्मिक उन्नति देखता है ।
झूठा गुरु अपने शिष्य से दान मांगता है ।
सदगुरु अपने शिष्य से उसका अहंकार मांगता है ।
झूठा गुरु अपने शिष्य से दान लेकर अपना आश्रम बनाता है ।
सदगुरु अपने शिष्य का दान शिष्य के द्वारा जनकल्याण में लगाता है ।
झूठा गुरु अपने शिष्यों में भेद करता है । मतलब अमीर गरीब देखता है ।
सदगुरु अपने शिष्यों काे एक समान देखता है और उनसे समान व्यवहार करता है ।
झूठा गुरु भोजन में रूची लेता है । सदगुरु भजन में रूची लेता है ।
मित्रों मैंनें कोशिश की है कि सच्चे सदगुरु की पहचान बताने की ।
आप सब पढ़े लिखे है ।
आप खुद निर्णय कीजिए ।
जय श्री हरमिलाप साहिब जी



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