रविवार, 7 फ़रवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/५५-७)

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॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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सन्मुख सद्गुरु साधु सौं, सांई सौं राता ।
दादू प्याला प्रेम का, महा रस माता ॥५५॥
सद्गुरु और सँतों से अनुकूल रहे, परमात्मा में अनुरक्त रहे और भगवत् - प्रेम - रूप प्याले के ब्रह्म साक्षात्कार रूप महा - रस में मस्त रहे ।
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सांई सौं साचा रहे, सद्गुरु सौं सूरा ।
साधू सौं सन्मुख रहे, सो दादू पूरा ॥५६॥
जो गर्भ की प्रतिज्ञा को भजन द्वारा पूरी करके परमात्मा से सच्चा रहता है, सद्गुरु से प्राप्त उपदेश के पालन करने में वीर रहता है, साधन जन्य कष्ट को देखकर कायर नहीं होता, सँतों के अनुकूल रहता है, उक्त लक्षणों से युक्त वह साधक ध्यान ज्ञानादि साधना द्वारा पूर्ण ब्रह्म को प्राप्त करके पूर्ण ब्रह्म ही हो जाता है ।
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सद्गुरु मिलै तो पाइये, भक्ति मुक्ति भँडार ।
दादू सहजैं देखिये, साहिब का दीदार ॥५७॥
यदि सद्गुरु मिल जाते हैं तब तो भक्ति मुक्ति का भँडार सद्गुरु का उपदेश प्राप्त होता ही है और उपदेशानुसार साधन करके साधक अनायास ही ब्रह्म स्वरूप का साक्षात्कार करता है । 
(क्रमशः)

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