मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

= ४३ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू झूठा साचा कर लिया, विष अमृत जाना ।
दुख को सुख सब को कहै, ऐसा जगत दिवाना ॥ 
===============================
साभार ~ Anand Nareliya ~ ‘मोह क्या है?’
मोह है ठहरने की वृत्ति। जहां कुछ भी नहीं ठहरता, वहां सब ठहरा हुआ रहे—ऐसी भावदशा, ऐसी भांति। इससे दुख पैदा होगा। तुम खुद ही दुख पैदा कर रहे हो। फिर इस दुख से, तुम कहते हो कि छूटना कैसे हो?
यह छूटता भी नहीं। यह छूटता इसलिए नहीं कि इसको छोड़ो, तो तुम एकदम खाली हो जाते हो। फिर तुम क्या हो! दुख की कथा हो तुम। दुख का अंबार हो तुम। दुख ही दुख जमे हैं। इन सबको छोड़ दो, तो शून्य हो गए।
शून्य से घबड़ाहट लगती है। कि चलो, कुछ नहीं, सिरदर्द तो है! चलो, कुछ नहीं, कोई तकलीफ तो है, कोई तकलीफ से भरे तो हैं। कुछ उलझाव, कुछ व्यस्तता बनी है। तो आदमी इसलिए दुख नहीं छोड़ता।
प्रश्न पूछने वाले का खयाल ऐसा है कि जब दुख है, तो छूटता क्यों नहीं! इसीलिए नहीं छूटता कि यही तो है तुम्हारे पास। दुख की संपदा के अतिरिक्त तुम्हारे पास है क्या? इसको ही छोड़ दोगे, तो बचता क्या है ?
एक दिन हिसाब लगाना बैठकर। एक कागज पर लिखना कि क्या—क्या दुख है जीवन में। कंजूसी मत करना। सारी फेहरिश्ते लिख डालना। और फिर सोचना कि यह. सब छूट जाए, तो मेरे पास क्या बचता है?
तुम एकदम घबड़ा जाओगे। क्योंकि इसके अतिरिक्त तुम्हारे पास कुछ भी नहीं बचता। यही चिंताएं, यही विषाद, यही फिक्रें, यही स्मृतियां, यही कामनाएं, यही वासनाएं, यही सपने—इनके अतिरिक्त तुम्हारे पास क्या है? यही आपाधापी, यही रोज का संघर्ष—इसके अतिरिक्त तुम्हारे पास क्या है?
इस घबड़ाहट से आदमी उलझा रहता है। पुराने मोह कट जाते हैं, नए मोह बना लेता है। पुरानी झंझटें छूट जाती हैं, नयी झंझटें बना लेता है। पुरानी खतम ही नहीं हो पातीं, उसके पहले ही नए के बीज बो देता है कि कहीं ऐसा न हो कि कुछ ऐसी घड़ी आ जाए कि खाली छूट जाऊं। पुरानी झंझट खतम, नयी है नहीं। अब क्या करूं?
और आश्चर्य तुम्हें होगा यह जानकर कि जो इस भीतर की शून्यता को जानता है, वही सुख को जानता है। और तो सब दुख ही दुख है। जो इस शून्य होने को राजी है, वही पूर्ण हो पाता है। और तो सब खाली के खाली रह जाते हैं।
यह तुम्हें बड़ा उलटा लगेगा। जो खाली होने को राजी है, वह भर जाता है। और जो खाली होने को राजी नहीं है, वह सदा के लिए खाली रह जाता है।
जीसस ने कहा है : धन्य हैं वे, जो खोये; क्योंकि जिन्होंने खोया, उन्होंने पाया। और जिन्होंने बचाया, उन्होंने सब गंवाया।
इसलिए तुम दुख नहीं छोड़ते। कुछ तो है मुट्ठी में। दुख ही सही। मुट्ठी तो बंधी है। भ्रांति तो बनी है।...osho

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें