मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐

नाम सम्पूर्णता
साहिब जी के नांव में, बिरहा पीड़ पुकार । 
ताला बेली रोवणा, दादू है दीदार ॥
सतगुरु उपदेश करते हैं कि हे जिज्ञासुओं ! जिस प्रकार बिरहणी विरह की पीड़ा से, अपने प्रियतम का चिन्तन करती है और जैसे पतिव्रता स्त्री विरह की पीड़ा से अपने प्रियतम कहिए, पति की आराधना करती है, वैसे ही अति प्रीति से प्रभु का नाम-स्मरण करने से परमेश्वर का साक्षात्कार दर्शन होगा । 

विरह जागृति स्मरण विधि
साहिब जी के नांव में, भाव भगति विश्‍वास । 
लै समाधि लागा रहै, दादू सांई पास ॥ 
हे जिज्ञासुओं ! "साहिब जी'' कहिए परमेश्वर के नाम में भाव, भक्ति, "विश्वास'' कहिए श्रद्धा और "लय'' कहिए अभ्यास से तदाकार वृत्ति और इन्द्रियों की विविध वृत्ति रूप प्रवृत्ति तथा सहजावस्था रूप समाधि में जो परमेश्वर का भक्त एकाग्र होकर रहता है, उसके समीप ही कहिए अन्त:करण में ही परमेश्वर निवास करते हैं । 

साहिब जी के नांव में, मति बुधि ज्ञान विचार ।
प्रेम प्रीति स्नेह सुख, दादू ज्योति अपार ॥ 
हे जिज्ञासुओं ! परमेश्वर के नाम के स्मरण से निश्चय रूप मति कहिए निश्चयात्मक बुद्धि और नित्य अनित्य के विचार स्वरूप ज्ञान का उदय होता है । जिससे अपार ज्योतिरूप जो परमेश्वर है, उससे प्रभु के प्रति प्रेम, प्रीति, स्नेह कहिए, संलग्नता सुख कहिए परमानन्द का अनुभव होता है ।

साहिब जी के नांव में, सब कुछ भरे भंडार । 
नूर तेज अनन्त है, दादू सिरजनहार ॥ 
हे जिज्ञासुओं ! साहिब जी कहिए जगत के रचने वाले दयालु परमेश्वर का अनन्त कहिए, देशकाल-प्रच्छेद रहित तेजोमय दिव्य स्वरूप हैं । इसलिए ऐसे पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर के नाम के अन्तर्गत ही सम्पूर्ण दैवी-सम्पत्ति और ज्ञान, ध्यान, ऋद्धि-सिद्धि आदि के अनन्त भंडार भरे हैं । उस नाम को ह्रदय में धारण करो ।

जिसमें सब कुछ सो लिया, निरंजन का नांउँ ।
दादू हिरदै राखिए, मैं बलिहारी जांउँ ॥ 
हे जिज्ञासुओं ! जिस निरंजन, निराकार प्रभु के नाम में समस्त माया और माया के कार्य-प्रपंच और त्रिलोकी के सम्पूर्ण सुख विद्यमान हैं, उस परमेश्वर के ऐसे नाम को ह्रदय में धारण करके जो स्मरण करते हैं, वे भक्त और संत, सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं, उनके लिए कोई भी वस्तु अप्राप्य नहीं रहती, क्योंकि यह नाम कल्प-वृक्षवत् है, सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करता है, ऐसे प्रभु का नाम स्मरण करने वाले भक्त एवं संतों की हम बार-बार बलिहारी जाते हैं ।
(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग)

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