गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

= ४९ =

卐 सत्यराम सा 卐
गुरुमुख पाइये रे, ऐसा ज्ञान विचार ।
समझ समझ समझ्या नहीं, लागा रंग अपार ॥ टेक ॥
जांण जांण जांण्यां नहीं, ऐसी उपजै आइ ।
बूझ बूझ बूझ्या नहीं, ढोरी लागा जाइ ॥ १ ॥
ले ले ले लीया नहीं, हौंस रही मन मांहि ।
राख राख राख्या नहीं, मैं रस पीया नांहि ॥ २ ॥
पाय पाय पाया नहीं, तेजैं तेज समाइ ।
कर कर कछु किया नहीं, आतम अंग लगाइ ॥ ३ ॥
खेल खेल खेल्या नहीं, सन्मुख सिरजनहार ।
देख देख देख्या नहीं, दादू सेवक सार ॥ ४ ॥
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साभार ~ Anand Nareliya
दरवाजा बंद नहीं है। तुम खोलने की कोशिश में परेशान हो रहे हो ! तुम खोलने की कोशिश छोड़ो।
यहां तुमने जीवन को समस्या की तरह लिया कि तुम चूकते चले जाओगे। जीवन कोई समस्या नहीं है, जिसको सुलझाना है। न जीवन कोई प्रश्न है, जिसका उत्तर कहीं से पाना है। जीवन एक रहस्य है, जिसको जीना है।
फर्क समझ लेना समस्या और रहस्य का। समस्या का अर्थ होता है, जिसका समाधान हो। रहस्य का अर्थ होता है, जिसका समाधान हो ही न। रहस्य का अर्थ होता है, जिसका उत्तर है ही नहीं। रहस्य का अर्थ होता है तुम खोजे जाओ। खोजते—खोजते तुम खो जाओगे, लेकिन खोज जारी रहेगी। अंतहीन है खोज।
इसलिए तो हम परमात्मा को असीम कहते हैं। असीम का अर्थ होता है, जिसकी कभी कोई सीमा न आएगी। इसलिए तो परमात्मा को हम अज्ञेय कहते हैं, जिसे हम जान—जानकर भी न जान पाएंगे।
इसीलिए तो पंडित हार जाता है और भोले—भाले लोग जान लेते हैं। पंडित और भोले—भाले लोगों की वही हालत है, जो हूदनी की हुई। पहले वह पंडित था। तीन घंटे तक पंडित रहा। —तब तक नहीं खुला दरवाजा। क्योंकि वह सोच रहा था. ताला होना चाहिए। ताला होता, तो पांडित्य काम कर जाता। लेकिन ताला था ही नहीं, तो पांडित्य करे क्या !
समस्या है नहीं जीवन में कोई; पांडित्य करे क्या ? होती समस्या, पांडित्य हल कर लेता। बुद्धि करे क्या ! बुद्धि नपुंसक है। तर्क करे क्या ! तर्क का बस नहीं चलता। समस्या होती, तो बस चल जाता। जिंदगी एक रहस्य है।
जब गिर पड़ा हारकर हूदनी, उसी धक्के में दरवाजा खुल गया। जो खोले—खोले न खुला, वह अपने से खुल गया। वह बंद था ही नहीं।
इसलिए जीसस ने कहा है जो बच्चों की भांति भोले—भाले हैं, वे ही मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश पा सकेंगे।
क्यों बच्चों की भांति भोले—भाले लोग पा सकेंगे? क्योंकि बच्चे ही रहस्य को जीना जानते हैं।
तुमने छोटे बच्चे देखे ! चारों तरफ उन्हें विमुग्ध करने वाला जगत दिखायी पड़ता है। हर चीज उन्हें आकर्षित करती है। एक तितली उड़ी जाती है, भागने लगते हैं। तुम कहते हो. कहां भाग रहा है पागल ! क्योंकि तुम्हें तितली में कुछ नहीं दिखता। तुम अंधे हो। तुम अंधे हो गए हो। तुम्हारी आंख पर धूल जम गयी है। समय ने तुम्हारी आंख को खराब कर दिया है। स्कूल ने, शिक्षकों ने, माता—पिताओं ने, संस्कारों ने तुम्हारी आंख को धूमिल कर दिया है। तुम्हारे आश्चर्य की हत्या कर दी है। और जिस आदमी के भीतर आश्चर्य मर गया, उस आदमी के भीतर आत्मा मर गयी।
तुम अब चकित होने की क्षमता खो दिए हो। चकित होने जैसी बात है। तितली का होना असंभव जैसा होना है। होना नहीं चाहिए। इतनी सुंदर तितली! इतनी रंग—बिरंगी तितली ! यूं उड़ी जाती है। बच्चा चकित है, विमुग्ध है। भागा। तुम उसका हाथ खींचते हो। कहते हो : कहां जाते हो?
बच्चा घास में खिले एक फूल को देखकर विमुग्ध हो जाता है। रसलीन हो जाता है। कंकड़—पत्थर बीनने लगता है समुद्र के तट पर। रंग—बिरंगे कंकड़—पत्थर! तुम कहते हो यह तू क्या कर रहा है? फिजूल ये चीजें कहां ले जा रहा है? तुमसे बचाकर भी बच्चा अपने जेब में कंकड़—पत्थर भर लाता है। रात उसकी माँ को उसके बिस्तर में से कंकड़—पत्थर निकालकर अलग करने पडते हैं।
इन कंकड़—पत्थरों में बच्चे को अभी उतना दिख रहा है, जितना बाद में तुम्हें हीरों में भी नहीं दिखेगा। इस बच्चे के पास अभी गहरी आंख है।
यहां हर चीज रहस्यमय है। छोटे से कंकड़ में भी तो परमात्मा विराजमान है। हर कंकड़ हीरा है। होना ही चाहिए। क्योंकि हर कंकड़ पर उसी के हस्ताक्षर हैं। होना ही चाहिए। हर पत्ती पर वेद है। हर फूल में उपनिषद है। हर पक्षी की आवाज में कुरान की आयत है। होनी ही चाहिए। क्योंकि वही तो बोलता है। क्योंकि वही तो खिलता है। क्योंकि वही तो उड़ता है। वही है।
बच्चा रोमांचित हो जाता है छोटी—छोटी बात से। एक तोता उड़ जाता है और बच्चा रोमाचित हो जाता है।
जिस दिन तुम बच्चे जैसे होओगे। फिर से तुम्हें बच्चा होना पड़ेगा। फिर से तुम्हें धूल झाड़नी होगी। समय ने, समाज ने, संस्कारों ने तुम्हारे मन में जो विकृतियां डाल दी हैं—विकृतियां यानी शान—वह जो शान डाल दिया है, वह जो पांडित्य डाल दिया है, तुम्हें भ्रम दे दिया है कि मैं जानता हूं; उस भ्रम को छोडना होगा। न तो कोई औजार है, न कोई तरकीब है। क्योंकि यहां कोई ताला ही नहीं है, जिसको तोड़ना हो। औजार की कोई जरूरत ही नहीं है। ताला लगा ही नहीं है, सब दरवाजे खुले हैं। सिर्फ तुम्हारी आंखें बंद हैं। अब आंखें खोलने के लिए तो औजार इत्यादि थोडे ही होते हैं। यहां परमात्मा के ऊपर कोई दरवाजे नहीं हैं।
परमात्मा खुला है; प्रगट है। तुम आंख से ओझल किए बैठे हो। तुम आंख पर पर्दा डाले बैठे हो। तुम्हारी आंख बंद है। अब आंख खोलने के लिए कोई स्कू ड्राइवर या हथौड़ी या कोई आरे की थोड़े ही जरूरत है। जब खोलना चाहो, तब खोल लो। तुम्हारी मर्जी की बात है।
खोलने के लिए प्रयास भी क्या करना है! खोलना चाहो अभी खोल लो; और अभी विमुक्त हो जाओ। और अभी ये फूल—पत्तियों का राज बदल जाए। और अभी ये हवाएं कुछ और संदेश लाने लगें। और ये सूरज की नाचती किरणें अभी परमात्मा का नृत्य बन जाएं। और ये लोग जो तुम्हारे चारों तरफ बैठे हैं, इनके भीतर वही छिपा है। तुम्हारे भीतर वही छिपा है। खोजने जाते कहाँ हो। खोजने वाले में भी वही छिपा है।
न कोई विधि है, न कोई विधान। समझ चाहिए। बस समझ चाहिए और समझ यानी दर्पण जैसा चित्त चाहिए।
समझ शब्द से तुम मत समझ लेना, समझदारों की समझ। समझदार तो बड़े नासमझ हैं। नासमझों की समझ से मेरा मतलब है।
सुकरात ने कहा है. जब मैं जानता था, तब कुछ भी नहीं जानता था। और जब से सब जानना छूट गया है, क्या जानने को बचा! सब जान लिया।
लाओत्सु ने कहा है : जो कहे जानता हूं समझ लेना कि नहीं जानता। जानने वाले कैसे कहेंगे कि जानते हैं? क्योंकि जानने को है क्या? सिर्फ रहस्य है। रहस्य को जाना कैसे जा सकता है?
जाना जाता है जब रहस्य, तो यही जाना जाता है कि जानने को कुछ भी नहीं है। और क्या जाना जाता है! एक आश्चर्यविमुग्ध भाव घेर लेता है। एक अहोभाव घेर लेता है। तुम फिर दौड़ने लगते हो अस्तित्व के पीछे, जैसा बच्चा तितली के पीछे दौड़ता है। तुम फिर से समुद्र के तट पर, जीवन के समुद्र तट पर शंख—सीप बीनने लगते हो। फिर तुम्हारे जीवन में अहर्निश आनंद की वर्षा शुरू हो जाती है।....osho


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