गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

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卐 सत्यराम सा 卐
दादू प्राण पयाना कर गया, माटी धरी मसाण ।
जालणहारे देखकर, चेतैं नहीं अजाण ॥ ६३ ॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! झूठे व्यवहार करते - करते शरीर से प्राण निकल गये । शरीर रूप मिट्टी शमशान में ऱखी है । जलाने वाले देख रहे हैं । परन्तु फिर भी वे गंवार, विषयों के यार, यह नहीं विचार करते कि एक रोज हमारा शरीर भी शमशान में लाकर जलाया जायेगा ॥ ६३ ॥ 
म्रियमाणं मृतं बन्धुं शोचन्ति परिवेदिनः । 
आत्मानं नानुशोचन्ति कालेन कवलीकृतम् ॥ 
(मरे हुए भाई - बन्धुओं को देखकर शोक करता है, किन्तु मैं भी एक दिन मरूंगा, यह नहीं सोचता ।)
कबीर जिन हम जाये ते मुये, हम भी चालणहार । 
जे हमको आगे मिले, तिन भी बंध्या भार ॥ 

दादू केई जाले केई जालिये, केई जालण जांहि ।
केई जालन की करैं, दादू जीवन नांहि ॥ ६४ ॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! कितने ही तो जला दिये और कितने ही को जलाना है । और कितने ही को जलाने जा रहे हैं । कितने ही को जलाने की तैयारी कर रहे हैं । अतः जीने की आशा नहीं है ॥ ६४ ॥ 
कबीर रोवन हारे भी मुये, मुये जलावनहार । 
हा हा करते ही मुये, का सन करौं पुकार ॥ 

केई गाड़े केई गाड़िये, केई गाडण जांहि ।
केई गाड़ण की करैं, दादू जीवन नांहिं ॥ ६५ ॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! कितने ही तो दफना दिये और कितने ही को दफनाना है । कितने ही को दफनाने जा रहे हैं । कितने ही को दफनाने की तैयारी कर रहे हैं, परन्तु देखने वाले कोई भी उस मालिक का एक दिल होकर नाम स्मरण नहीं करते ॥ ६५ ॥ 
कबीर केई कबर में दाबिये, केई खोदे खाड । 
केई तैयारी कर रहे, अंतक बैरी ठाड ॥ 
जिन हम जाया ते मुये, हम भी चालनहार । 
जे हमकों आगे मिले, तिन भी बाँध्या भार ॥ 

दादू कहै - उठ रे प्राणी जाग जीव, अपना सजन संभाल ।
गाफिल नींद न कीजिये, आइ पहुंता काल ॥ ६६ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि कहते हैं कि हे प्राणी ! उठ, कहिये मानसिक पुरूषार्थ कर । अज्ञान - निद्रा से जाग कर मायावी आसक्ति का त्याग करके, अपने सज्जन, परम प्यारे परमेश्वर का नाम स्मरण कर । हे साधक पुरुष ! प्रभु के भजन से कभी भी विमुख नहीं होना, क्योंकि सबके सिर पर काल - भगवान का चक्र घूम रहा है ॥ ६६ ॥ 
कही पातसाह मोहि को, मीच न याद रहाइ । 
ल्याप बीरबल बोड़ बहु, खड़े दिखाये आइ ॥ 
दृष्टान्त ~ बादशाह अकबर बीरबल से बोले ~ बीरबल मुझे मौत याद नहीं रहती है । बीरबल बोले ~ हुजूर ! मौत तो मैं आपको रोज याद करा दूंगा । दूसरे दिन कब्र खोदने वालों को हाथों में फावड़े और गेंती लिए हुए बीरबल ने लाकर बादशाह के सामने खड़े कर दिये । बोला हुजूर ! इनको रोज देख लिया करो, यही कब्र खोदने वाले हैं । इनके रोज दर्शन कर लिया करो, मौत याद रहेगी ।
(श्री दादूवाणी ~ काल का अंग)

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