गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

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卐 सत्यराम सा 卐
दादू सब ही मृतक समान हैं, जीया तब ही जाण ।
दादू छांटा अमी का, को साधु बाहे आण ॥ 
सबही मृतक ह्वै रहे, जीवैं कौन उपाइ ।
दादू अमृत रामरस, को साधू सींचे आइ ॥ 
सब ही मृतक देखिये, क्यों कर जीवैं सोइ ।
दादू साधु प्रेम रस, आणि पिलावे कोइ ॥ 
सब ही मृतक देखिये, किहिं विधि जीवैं जीव ।
साधु सुधारस आणि करि, दादू बरसे पीव ॥
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साभार ~ Shatrughna Khetan

नियमित सत्संग में आने वाले एक आदमी नें जब एक बार सत्संग में यह सुना कि जिसने जैसे कर्म किये हैं उसे अपने कर्मो अनुसार वैसे ही फल भी भोगने पड़ेंगे । यह सुनकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ अपनी आशंका का समाधान करने हेतु उसने सतसंग करने वाले संत जी से पूछा..... अगर कर्मों का फल भोगना ही पड़ेंगा तो फिर सत्संग में आने का किया फायदा है.....? 
संत जी नें मुसकुरा कर उसे देखा और एक ईंट की तरफ इशारा कर के कहा की तुम इस ईंट को छत पर ले जा कर मेरे सर पर फेंक दो ।
यह सुनकर वह आदमी बोला संत जी इससे तो आपको चोट लगेगी दर्द होगा ।
मैं यह नहीं कर सकता..... 
संत ने कहा....
अच्छा, फिर उसे उसी ईंट के भार के बराबर का रुई का गट्ठा बांध कर दिया और कहा अब इसे ले जाकर मेरे सिर पे फैंकने से भी कया मुझे चोट लगेगी....?? 
वह बोला नहीं..... 
संत ने कहा.....
बेटा इसी तरह सत्संग में आने से इन्सान को अपने कर्मो का बोझ हल्का लगने लगता है और वह हर दुःख तकलीफ को परमात्मा की दया समझ कर बड़े प्यार से सह लेता है । 
सत्संग में आने से इन्सान का मन निरमल होता है और वह मोह माया के चक्कर में होने वाले पापों से भी बचा रहता है और अपने सतगुरु की मौज में रहता हुआ एक दिन अपने निज घर सतलोक पहुँच जाता है!

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