शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (तृ.उ. ५१-५२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**अथ हठयोग नामक - तृतीय उपदेश**
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*काल न खाई शस्त्र नहिं लागै ।*
*यंत्र मंत्र ता देखत भागै ।* 
*शीत उष्ण कबहू नहिं होई ।*
*परम समाधि कहावै सोई ॥५१॥* 
इस अवस्था में योगी को न मौत का भय रहता है, न किसी हथियार का डर रहता है, दूसरे के चलाये हुए यन्त्र तथा मन्त्र तथा इस समाधिनिष्ठ योगी को देख कर दूर से ही निष्फल हो जाते हैं । इसको इस अवस्था में सर्दी-गर्मी भी नहीं सताती । योगी को इसी अवस्था को परमसमाधि-अवस्था कहते हैं ॥५१॥
*= दोहा =* 
*यह हठ योग सु चारि बिधि, नींकै कह्यौ सुनाइ ।* 
*साधनहारे पुरुष की, सुन्दर बलि बलि जाइ ॥५२॥* 
इति श्रीसुन्दरदास विरचितायां सर्वांगयोगप्रदीपिकायां हठयोगनामा तृतीयोपदेशः ॥३॥ 
हे शिष्य ! हठयोग की इन चारों विधियों(हठयोग, राजयोग, लक्ष्ययोग तथा अष्टांगयोग) का भलीभाँति वर्णन कर दिया । महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - बलिहारी है उस साधक योगी की, जो इन चारों विधियों से योग की साधना का पारंगत हो चुका है ॥५२॥ 
श्रीस्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत सर्वांगयोगप्रदीपिका ग्रन्थ में हठयोग नामक तृतीय उपदेश समाप्त ॥ 
(क्रमशः)

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