शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

= विन्दु (२)८५ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८५ =**

किरड़ोली के भक्त संकीर्तन करते हुये दादूजी के सामने आये और प्रणामादि करके अति सत्कार से दादूजी को ग्राम में ले गये और प्रयागदासजी के द्वार पर ही ठहराया । दूसरे दिन ब्रह्ममुहूर्त्त में दादूजी महाराज ने प्रयागदासजी को सचेत करने के लिये ये दो पद गाये - 
**= प्रयागदासजी को सचेत करना =**
संत सेवा में अधिक व्यस्त होने से प्रयागदासजी दादूजी से पहले नहीं जाग सके थे । यह प्रसिद्ध ही है, अधिक कार्य में लगने से थकान आ ही जाती है । प्रयागदासजी बहुत रात गये सोये थे । अतः वे शीघ्र नहीं जाग सके थे । उन्हें जगाने के लिये ही उस समय दादूजी महाराज उच्चस्वर में दो पद गाये थे । वे दो पद ये हैं - पहला पद - 
"जागरे किस नींदड़ी सूता । 
रैण बिहाई सब गई, दिन आय पहूंता ॥ टेक ॥ 
सो क्यों सोवे नींदड़ी, जिस मरणा होवे रे । 
जौरा१ बैरी जागणा, जीव तूं क्यों सोवे रे ॥ १ ॥ 
जाके शिर पर जम खड़ा, शर सांधे मारे रे । 
सो क्यों सोवे नींदड़ी, कहि क्यों न पुकारे रे ॥ २ ॥ 
दिन प्रति निश काल झंपै, जीव न जागे रे । 
दादू सूता नींदड़ी, उस अंग न लागे रे ॥ ३ ॥ 
काल से सावधान कर रहे हैं - अरे प्राणी ! किस लिए, मोह निद्रा में सो रहा है ? तेरी आयु - रात्रि तो सब व्यतीत हो गई है, अब तो मृत्यु का दिन भी समीप आ पहुंचा है । जिसको मरणा स्मरण होगा, वह कैसे निद्रा में सोयेगा ? हे जीव ! तेरा शत्रु बलवान्१ काल तो सदा जागते हुये प्राणियों का नाश कर रहा है फिर तू कैसे सो रहा है ? जिसके शिर पर यम खड़ा हो और क्षण, घटिकादिक कालरूप बाण संधान करके मार रहा हो, वह नींद में कैसे सोयेगा ? और रक्षा करो ऐसा कहकर क्यों नहीं पुकार करेगा ? प्रतिदिन प्रतिरात्रि काल श्वासों को क्षीण करना यूप झपट्टा मार रहा है फिर भी जीव नहीं जागता, मोह - निद्रा में ही सोता है, जागकर प्रभु के स्वरूप में नहीं लगता है । 
(क्रमशः)

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