गुरुवार, 15 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (तृ.उ. ३५/६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**अथ हठयोग नामक - तृतीय उपदेश**
*रक्त वर्ण भ्रमरा उनमाना ।*
*लक्ष करै त्रिकुटी जु सथाना ।*
*यातें सब कौं लगै पियारा ।*
*वा तन देखहिं बारम्बारा ॥३५॥* 
(इसी साधना के लिये एक विधि और सुनिये --) दोनों भ्रुवों के बीच एक लाल(सिंदूरी) रंग के भौंरै के आकार का लक्ष्य बनाकर वहाँ ध्यान करने का अभ्यास करे । यह एक प्रकार का वशीकरण उपाय है । तात्पर्य यह है कि यदि इस सिंदूरी रंग के लक्ष्य की साधना करे तो उसे अनायास ही वशीकरण सिद्धि मिल जाती है । वह जिसे चाहे उसे अपने वश में कर लेता है । वह व्यक्ति इस योगी की तरफ आकृष्ट होकर बार-बार उसकी ओर ही देखता रहता है ॥३५॥ 
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*= दोहा =* 
*लक्ष योग जो साधई, बैठत ऊठत कोइ ।*
*सतगुरु के जु प्रसाद तें, अति सुख पावै सोई ॥* 
जो योगी उठते-बैठते दिन-रात इस लक्ष्ययोग में बतायी विधियों की साधना में लगा रहता है, वह श्रीगुरुदेव की कृपा से एक दिन आत्यन्तिक सुख की प्राप्ति का अधिकारी हो जाता है ॥३६॥ 
(क्रमशः)

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