सोमवार, 26 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. ५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**सांख्ययोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
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*वाक्य हि पाणि पाद अरु पायुः ।*
*उपस्थ सहित पंच समुझायुः ।* 
*कर्म सु इन्द्रिय इन कौ नामा ।*
*तत्पर अपनै अपनै कामा ॥५॥*
वागिन्द्रिय, पाणीन्द्रिय, पादेन्द्रिय, गुदेन्द्रिय तथा शिश्नेन्द्रिय - ये पाँच कर्मेन्द्रिय कहलाती हैं । ये सब अपने अपने कार्य से जगत् में उसी के नाम से प्रसिद्ध हैं ॥५॥ 
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*= अन्तःकरणचतुष्टय =*
*मन अरु बुद्धि चित्त अहंकारा ।*
*चतुष्ट अन्तहकरण बिचारा ।* 
*तिन कै लक्षण भिन्नै भिन्ना ।*
*महापुरुष समुझाये चिन्हा ॥६॥*
मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार - ये चार ‘अन्तःकरणचतुष्टय’ नाम से प्रसिद्ध हैं । महापुरुषों(शास्त्रकारों) ने इन चारों के पृथक् पृथक् लक्षण बताये हैं, उन्हें भी समझ लो ॥६॥
(क्रमशः)

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