सोमवार, 26 सितंबर 2016

= विन्दु (२)८५ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८५ =**

**= शिष्य चतुरदास संगरावटिया =**
एक दिन किरड़ोली में सरसंग के समय एक चतुरदास नामक व्यक्ति आये और दादूजी के प्रवचन से बहुत प्रभावित हुये । सत्संग समाप्ति पर चतुरदास ने हाथ जोड़कर दादूजी से प्रार्थना की स्वामिन् ! मेरे को कौनसा साधन करना चाहिये । जो मेरे योग्य हो वही आप बताओ । चतुरदास का उक्त प्रधन सुनकर संत प्रवर दादूजी महाराज ने उनका अधिकार देखकर यह पद बोला - 
"मेरे मन भैया राम कहो रे, 
राम नाम मोहि सहज सुहावे, उनहीं चरण मन कीन्ह रहो रे ॥ टेक ॥
राम नाम ले संत सुहावे, कोई कहै सब शीश सहो रे । 
वाही सौं मन जोरे राखो, नीके राशि लिये निबहो रे ॥ १ ॥ 
कहत सुनत तेरी कछु न जावे, पाप न छेद न सोइ लहो रे । 
दादू रे जन हरि गुण गावो, कालहि ज्वालहि फेरी दहो रे ॥ २ ॥"
नाम स्मरण का उपदेश कर रहे हैं - ए भैया ! तुम मन के द्वारा रामनाम का चिन्तन करो, समाधि रूप सहजावस्था में मुझे भगवान् राम नाम ही सुनाते हैं । अतः उन्हीं के स्वरूप चरणों में मन लगाये रहो । रामनाम चिन्तन से ही संत अच्छा लगता है । इसीलिए उसी में मन लगाए रक्खो । यह नाम ही संपूर्ण श्रेष्ठताओं की राशि है, इसे हृदय में रखते हुये ही अपना निर्वाह करो और कोई तुम्हारे विपरीत वचन कहे, उसे सहन करलो । क्योंकि कहने सुनने से तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगड़ेगा और तुम पापों को नष्ट करने वाले परमात्मा को प्राप्त कर लोगे । अतः हे जन ! शीघ्र ही हरि के गुणों का गान करो नहीं तो फिर कालाग्नि की ज्वाला में ही जलोगे । उक्त उपदेश सुनकर चतुरदास दादूजी महाराज के शिष्य हो गये । फिर अपनी इच्छानुसार दादूजी के संग रहकर संगरावट में इन्होंने अपना साधन ग्राम बनाया । ये दादूजी के ५२ शिष्यों में माने जाते हैं । 
(क्रमशः)

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