रविवार, 25 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. ३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**सांख्ययोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
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*= पंच महाभूत =* 
*पृथि अपु तेज वायु अरु गगना ।*
*ये पंचौं आतम संलगना ।* 
*पंचनि मैं मिलि और बिकारा ।*
*तिनि यह किया प्रपंच पसारा ॥३॥*
पृथ्वी, जल, तेज(अग्नि), वायु तथा आकाश -ये पाँचों महाभूत आत्मा(चेतन) के द्वारा संचालित(प्रेरित) हैं । इन पाँचों में इन्द्रियाँ आदि अन्य तत्व जब सम्मलित होते हैं तो यह समग्र स्थूल जगत्प्रपंच फैलता है, व्यवहार में आता है ॥३॥
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*= पंचतन्मात्रा, इन्द्रिय वर्णन =* 
*शब्द सपर्श रूप रस गंधा ।*
*तन्मातृका पंच तन बंधा ।* 
*श्रोत्र त्वक् चक्षु जिह्वा घ्राणं ।*
*ज्ञान सु इन्द्रय कियौ बखाणं ॥४॥* 
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध- ये पाँच तन्मात्राएँ कहलाती हैं । ये भी उस सृष्टि-प्रक्रिया में उन्हीं पाँचों से सम्पृक्त होती हैं । श्रोत्रेन्द्रिय, त्वगिन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, रसनेन्द्रिय तथा घ्राणेन्द्रिय- ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ कहलाती हैं ॥४॥ 
(क्रमशः)

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