रविवार, 25 सितंबर 2016

= विन्दु (२)८५ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८५ =**

**= शिष्य संतदास चमरिया =** 
उन्हीं दिनों में संतदास अग्रवाल चमरिया वैश्य भी दादूजी के सत्संग में आये, दादूजी के उपदेशों से अति प्रभावित हुये फिर उन्होंने अपने कुटुंब के सहित दादूजी से दीक्षा लेने की प्रार्थना की तब दादूजी ने सबको गुरुमन्त्र देकर दीक्षा दी और इस पद से उपदेश किया - 
"जागत को कदे न मूसे कोई, 
जागत जान जतन कर राखे, चोर न लागू होई ॥ टेक ॥ 
सोवत शाह वस्तु नहिं पावे, चोर मुसे घर घेरा । 
आस पास पहरे को नांहीं, वस्तैं कीन्ह नबेरा ॥ १ ॥ 
पीछे कहु क्या जागे होई, वस्तु हाथ तैं जाई । 
बीती रैन बहुर नहिं आवे, तब क्या कर है भाई ॥ २ ॥ 
पहले ही पहरे जे जागे, वस्तु कछु नहिं छीजे । 
दादू जुगति जान कर ऐसी, करना है सो कीजे ॥ ३ ॥" 
हितकर उपदेश कर रहे हैं - जानते हुये की वस्तु को कोई नहीं चुरा सकता है । जो जागते हुये अपनी विचारादि वस्तुओं को यत्न से रखता है, उसे सावधान जानकार उसकी वस्तु चुराने में कामादि चोर संलग्न नहीं होते हैं । जो जीव रूप शाह अज्ञान - निद्रा में सोता है, उसकी सद् विचारादि वस्तुयें उसे नहीं मिलती हैं । अन्तःकरण घर के घेरा डालकर कामादिक चोर चुरा ले जाते हैं । अन्तःकरण के आस - पास दैवी गुण रूप पहरेदार नहीं होते है तब तो कामादिक चोर सद् विचारादि वस्तुओं को समाप्त ही कर डालते हैं । निरोगा - वस्था के श्वास रूप वस्तु हाथ से चली जाने पर सावधान होने से भी क्या होगा ? यह आयु रात्रि व्यतीत पर फिर नहीं आती है । हे भाई ! तब अन्त समय में क्या कर सकेगा ? जो आयु - रात्रि के पहले पहर में ही जाग जाता है, उसकी सद् - विचारादि वस्तुयें कुछ भी क्षीण नहीं होती है । अतः ऐसी उक्ती - युक्ति अच्छी प्रकार समझ कर जो तेरा कर्तव्य है, उसे शीघ्र ही कर । 
उक्त उपदेश को सुनकर संतदास अपने कुल के सहित सचेत होकर उक्त उपदेशानुसार ही जीवन बनाने के लिये यत्न करने लगे । यह संतदासजी, संतदास मारू नाम से दादूजी के सौ शिष्यों में प्रसिद्ध हैं । ये अच्छे संत कवि भी थे । इनका दादूजी की महिमा के रूप में खड़का ग्रंथ प्रसिद्ध है । जिसको सुनने के लिये काशी में स्वयं गंगाजी ने प्रकट होकर इनको कहा था, तुम मुझे अपना खड़का ग्रंथ सुनाओ और सुनकर अति प्रसन्न हुई थी । इनके कई शिष्य भी अच्छे संत कवि हुये हैं । चतुरदास, जो इनके भतीजे तथा शिष्य भी थे, उनका भागवत् एकादश स्कंध का पद्यानुवाद प्रसिद्ध है । प्रसिद्ध कवि भीखजन भी इन्हीं के शिष्य थे । गोपालदास - सर्वांगसरह चिन्तामणि विशाल संग्रह ग्रंथ के रचियता भी इनके ही शिष्य हैं । 
(क्रमशः)

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