शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. ११-१२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**सांख्ययोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
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*यह आतम अन आतम निरना ।*
*समझै ताकौं जरा न मरना ।*
*सांख्य सु मत याही सौं कहिये ।*
*सतगुरु बिना कहौ क्यौं लहिये ॥११॥*
इस तरह हमने विस्तार से आत्म-अनात्म तत्वों का विवेचन(निर्णय) कर दिया । इस विवेक को समझ लेने वाले ज्ञानी को जरा(बुढ़ापा), मृत्यु का भय नहीं रहता । अर्थात् वह जन्म-मरण के बन्धन से छूट जाता है । यह हुआ सांख्यमत का विवेचन । यह सद्गुरु की कृपा के बिना किसी को कैसे प्राप्त हो सकता है ! ॥११॥ 
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*= दोहा =* 
*सांख्य योग सो यह कह्यौ, भिन्न हि भिन्न प्रकार ।* 
*आतम नित्य स्वरूप है, देह अनित्य विचार ॥१२॥* 
इस तरह हमने सांख्यमत का विस्तार से पृथक् पृथक् कर वर्णन कर दिया । संक्षेप में निष्कर्ष यों समझिये कि आत्मा नित्यस्वरूप है और देह अनित्य है । साधक को निरन्तर इसी निष्कृष्ट सिद्धान्त का श्रवण-मनन-निदिध्यासन करना चाहिये ॥१२॥ 
(क्रमशः)

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