मंगलवार, 20 सितंबर 2016

=१=

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
जब हम ऊजड़ चालते, तब कहते मारग मांहि ।
दादू पहुंचे पंथ चल, कहैं यहु मारग नांहि ॥ 
=============================
साभार ~ Ranjeet Gahnolia
नक़ल तो करना ही मत......!
गुरजिएफ ने कहा है कि मेरी दादी ने मुझसे कहा कि मैं मरने के करीब हूं और मुझे पता भी नहीं चलेगा कि तूने मेरी बात मानी कि नहीं मानी! तो मरने के पहले मुझे तू उदाहरण एक करके दिखा दे। पास ही पड़ा था एक सेव, उसकी बूढ़ी दादी ने उसे दिया और कहा, इसे खाकर बता! लेकिन याद रख, जैसा दूसरे करते हैं, वैसा मत करना।
बड़ी मुश्किल में पड़ गया होगा वह बच्चा, क्या करे? लेकिन बच्चे इन्वेंटिव होते हैं, काफी आविष्कारक होते हैं। अगर मां—बाप उनके आविष्कार की बिलकुल हत्या न कर दें तो इस दुनिया में बहुत आविष्कारक लोग हों। लेकिन आविष्कार खतरा मालूम पड़ता है, क्योंकि नया कुछ उपद्रव लाता है।
गुरजिएफ ने पहले कान से लगा कर उस सेव को सुना, आख के पास लाकर देखा, चूमा, हाथ से स्पर्श किया आख बंद करके; उस सेव को लेकर नाचा, उछला, कूदा, दौड़ा; फिर उस सेव को खाया। उसकी दादी ने कहा, मैं आश्वस्त हूं!
फिर गुरजिएफ ने कहा, यह मेरी जिंदगी का नियम हो गया कि कुछ भी काम करो, दूसरे जैसा न करना; कुछ न कुछ अपने जैसा करना। लोग उस पर हंसते थे। लोग कहते, पागल है! लोग कहते, यह किस तरह का आदमी है! यह क्या कर रहा है ?’ सेव को कान से सुन रहा है!
गुरजिएफ ने कहा कि मुझे पता भी नहीं था, लेकिन इसका एक परिणाम हुआ कि मुझे दूसरों की चिंता न रही। दूसरे क्या कहते हैं, दूसरों का क्या मंतव्य है, दूसरे मेरे संबंध में क्या धारणा बनाते हैं, यह बात ही छूट गई; मैं अकेला ही हो गया; मैं निपट अकेला हो गया इस पूरी पृथ्वी पर। और गुरजिएफ ने लिखा है, इस कारण मुझे वह मुसीबत कभी नहीं झेलनी पडी जो सभी को झेलनी पड़ती है। एक झूठा केंद्र मेरा निर्मित ही नहीं हुआ। और मुझे अहंकार मिटाने के लिए कभी कोई चेष्टा नहीं करनी पड़ी। वह बना ही नहीं।
ओशो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें