मंगलवार, 20 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (तृ.उ. ४४-५) =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**अथ हठयोग नामक - तृतीय उपदेश**
.
*ध्यान(७)*
*ध्यान सु आहि उभै जु प्रकार ।*
*एक सगुण इक निर्गुण सारा ।* 
*सगुण सु कहिये चक्र स्थानं ।*
*निर्गुण रूप आतमा ध्यानं ॥४४॥*
योगशास्त्रप्रवर्तकों ने चित्तनिरोध के उपाय के रूप में दो प्रकार के ध्यान भी बताये हैं -१. सगुण ध्यान.२. निर्गुण ध्यान ।
सगुण ध्यान वह कहलाता है जो छह चक्रों के माध्यम से किया जाता है । और निर्गुण वह ध्यान कहलाता है जिसके माध्यम से निराकार ब्रह्मस्वरूप आत्मा का ध्यान किया जाता है ॥४४॥ 
.
*प्रथम चक्र आधार कहावै ।*
*कंचन बर्ण चतुर ध्यावै ।* 
*दुतिय चक्र है स्वाधिष्ठानं ।*
*माणिक्याकृति ध्यान सु जानं ॥४५॥* 
(यहाँ चक्रों के विषय में कुछ विस्तार से जान लीजिये --) प्रथम चक्र का नाम है आधारचक्र । इसका सुनहरा वर्ण होता है, और यह चार दल(पंखुड़ियों) वाला होता है । दूसरा चक्र स्वाधिष्ठान चक्र कहलाता है, यह माणिक्य के आकार वाला होता है । अच्छे साधक को इसका भी ध्यान करना चाहिये ॥४५॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें