शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (तृ.उ. ३७/८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**अथ हठयोग नामक - तृतीय उपदेश**
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*अथ अष्टांगयोग = चौपई =* 
*यम-नियम(१-२)*
*अब यहु कहूँ योग अष्टंगा१ ।*
*भिन्न भिन्न बहु भांति प्रसंगा ।* 
*प्रथमहिं यम नियम बिचारै ।*
*पकरि टेक दश दशहिं प्रकारै ॥३७॥*
(१. यहाँ ३७ से ५१ छन्द तक अष्टांगयोग हठयोग के संक्षेपसार के रूप में वर्णित है । जो ‘ज्ञानसमुद्र’ के तृतीय उल्लास में विस्तार से कहा है ।) अब अष्टांगयोग के विषय में अलग-अलग बहुत से प्रसंगों के साथ कहता हूँ, सुनो अष्टांगयोग को साधना के लिये पहले उसके प्रथम दो अंग, यम-नियम की साधना की तरफ योगी को ध्यान देना चाहिये । आग्रहपूर्वक पहले दसों यमों तथा दसों नियमों की साधना का अभ्यास करें ॥३७॥ 
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*आसन(३)*
*बहुर्यौ करै सु आसन सबही ।*
*नर्म शरीर होइ पुनि तबही ।* 
*ता महिं सारभूत द्वै साधै ।*
*सिद्धासन पद्मासन बांधै ॥३८॥* 
तब तीसरे अंग आसन की साधना की तरफ ध्यान दे । इस अंग के अभ्यास से योग का शरीर ऋजुता को प्राप्त कर लेता है । इन चौरासी आसनों में से प्रसिद्ध दो आसनों - सिद्धासन और पद्मासन की साधना में ही पूरी ताकत लगा देनी चाहिये ॥३८॥
(क्रमशः)

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