शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

= विन्दु (२)८५ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= अथ विन्दु ८५ =

**= घाटवे ग्राम को जाना =** 
फिर घाटवा ग्राम के लाडखान शेखावत ठाकुर नौलासे आये और दादूजी को घाटवा ले गये । रायसिल के पुत्र लाडखानजी तथा उनका परिवार दादूजी का परम भक्त था । वहां उन्होंने भक्ति भाव पूर्वक महान् उत्सव किया था । वह सत्संग रूप महान् उत्सव चार दिन तक चलता रहा था । उसमें आस - पास के ग्रामों के लोग भी अधिक रूप से आते रहे थे, सत्संग रूप उत्सव रात्रि - दिन चलता था । दिन को अधिक प्रवचन चलते थे । दादूजी के विद्वान् शिष्य बारी - बारी से प्रवचन करते थे । रात्रि को भजन तथा हरिनाम संकीर्तन होता था । वह उत्सव आनन्द पूर्वक संपन्न हुआ था । फिर एक दिन लाडखानजी दादूजी को प्रणाम करके दादूजी के सामने बैठे थे, उनको उक्त प्रकार बैठे देख कर दादूजी ने उनको उपदेश करने के लिये यह पद बोला - 
**= लाडखान को उपदेश =** 
"निर्गुण राम रहै ल्यौ लाइ, सहजैं सहज मिले हरि जाइ ॥ टेक ॥ 
भव जल व्याधि लिपे नहिं कबहूँ, कर्म न कोई लागे आई । 
तीनों ताप जरे नहिं जियरा, सो पद परसे सहज सुभाइ ॥ १ ॥ 
जन्म ज़रा योनि नहिं आवे, माया मोह न लागे ताहि । 
पांचों पीड़ प्राण नहिं व्यापे, सकल शोधि सब इहै उपाय ॥ २ ॥ 
संकट संशय नरक न नैंन हुँ, ताको कबहुँ काल न खाय । 
कंप न काई भय भ्रम भागे, सब विधि ऐसी एक लगाय ॥ ३ ॥
सहज समाधि गहो जे दृढ़कर, जासौं लागे सोई आय । 
भृंगी होय कीट की न्यांई, हरिजन दादू एक दिखाय ॥ ४ ॥" 
(क्रमशः)

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