बुधवार, 21 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (तृ.उ. ४६-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**अथ हठयोग नामक - तृतीय उपदेश**
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*नाभिस्थान चक्र मणि पूरा ।*
*तरुण अर्क निभ ध्यावहु सूरा ।* 
*हृदय स्थान चक्र अनुहातू ।*
*बिज्जुल प्रभा ध्याय संगातू ॥४६॥*
तीसरे मणिपुर चक्र का नाभि में स्थान है, बाल सूर्य की तरह वर्ण है, इसी पर इसका ध्यान करना चाहिये । चतुर्थ अनुहात चक्र है, इसका हृदयस्थान है, विद्युत् प्रभा के समान इसका वर्ण है, योगी को इसी के साथ इसका ध्यान करना चाहिये ॥४६॥
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*कंठस्थान सु चक्र विशुद्धा ।*
*दीपक प्रभा जु ध्याय प्रबुद्धा ।*
*आज्ञा चक्र नील निभ ध्यावै ।*
*भ्रू मध्ये परमेश्वर पावै ॥४७॥* 
पाँचवाँ विशुद्ध नामक चक्र कंठस्थान वाला है, दीपक की रोशनी के समान इसका वर्ण है । इसी पर इसका ध्यान करना चाहिये । छठा आज्ञाचक्र भ्रूमध्य में वास करता है, इसका नीलवर्ण है । इस पर ध्यान करने वाला योगी एक दिन परमात्मा से तादात्म्य प्राप्त कर लेता है ॥४७॥ 
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*इति षट चक्र१ ध्यान जौ जानै ।*
*तबहिं जाइ निर्गुन पहिचानै ।* 
*गगनाकार ध्याय सब ठौरा ।*
*प्रभा मरीची जल नहिं औरा ॥४८॥* 
(१. षट्चक्र पीछे कथन किये हैं । यहाँ उनके रंग भी कहे हैं । देखिये ‘ज्ञानसमुद्र’ और टिप्पणी पृ. ५७-५८ ।) 
इन षट्चक्रों के ध्यान की साधना के बाद ही कोई योगी निर्गुण ध्यान की साधना तक पहुँच सकता है । निर्गुण ध्यान की साधना के लिये योगी को शून्य मण्डल में प्रकाशपुंज का ध्यान करना चाहिये । तब उसे सब तरफ एक प्रकाश दिखायी देगा; जैसे जल में डुबकी लगा कर देखने पर सब तरफ केवल जल ही जल(श्वेत वर्ण) दिखायी देता है ॥४८॥ 
(क्रमशः)

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