शनिवार, 24 सितंबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. १-२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**सांख्ययोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
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{इस प्रकरण में सांख्ययोग का चार प्रकार से वर्णन किया है - १. सांख्ययोग, २. ज्ञानयोग, ३. ब्रह्मयोग तथा ४. अद्वैतयोग । सांख्ययोग का वर्णन पीछे ज्ञानसमुद्र के चतुर्थ उल्लास में हो चुका है । यहाँ केवल नाममात्र के लिये२४ तत्व गिना दिये हैं । प्रकरणवश आत्म-अनात्म विवेक तथा क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का भी वर्णन है, जो जिज्ञासु के लिये अत्यधिक उपयोगी है ।} 
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*= सांख्ययोग(१) = चौपई =*
*अब सांख्य सु योग हि सुनि लेहू ।* 
*पीछै हम को दोस न देहू ।* 
*आतम अनआतमा बिचारा ।* 
*याही तें सांख्य सु निर्द्धारा ॥१॥* 
हे शिष्य ! अब सांख्ययोग का वर्णन सुन लो, पीछे हमें दोष न देना कि गुरुदेव का इतने समय तक सत्संग भी किया और सांख्य के विषय में कुछ अधिक नहीं पूछ पाये । आत्म तत्व और अनात्म तत्व के विषय में विचार करते समय सांख्यमत का ही सहारा लेना पड़ता है । अर्थात् सांख्यसिद्धान्त के मनन से ही यह बात समझ में आ पाती है कि कौन आत्मतत्व(चेतन) है ? तथा कौन अनात्म तत्व(जड़ पदार्थ) है ? ॥१॥ 
(१ से११ छन्द तक सांख्य शांस्त्र के सिद्धान्तों को अति-संक्षेप से अपने ढंग पर श्रीस्वामीजी ने दरसाया है । इसी को विस्तार से “ज्ञानसमुद्र” के चौथे उल्लास में और हमारी टिप्पणी को देखने से ज्ञात होगा कि श्री सुन्दरदास जी किस प्रकार सांख्य का निरूपण करते हैं । इन्होंने सांख्य को वेदांत से जा जुटाया है । सांख्य और वेदांत के मूल सिद्धान्तों में जो भेद है वे भी समझ रखने योग्य हैं । यदि इनमें आंतरिक भेद न होता तो पृथक्-पृथक् दर्शनशास्त्र क्यों होते ? श्रीसुन्दरदासजी वेदान्त की झलक सांख्य में भी लाते हैं । और यह बात स्वाभाविक है । आत्म और अनात्म का भेद जो ‘विवेक’ के नाम से वेदान्त में बड़े समारोह से वर्णित है सांख्य में वैसा नहीं है । वहाँ तो प्रकृति विकृति आदि से अधिक काम रहता है, जो प्रधान के नाम से वर्णित है । वेदान्त इसका खण्डन करता है ।) 
*= आत्म-अनात्मविवेक =* 
*आतम शुद्ध सु नित्य प्रकाशा ।* 
*अन आतमा देह का नाशा ।* 
*आतम सूक्षम ब्यापक मूला ।* 
*अन आतमा सो पंच सथूला ॥२॥* 
उनमें आत्म तत्व, नित्य, अविनाशी, प्रकाशमय है । अनात्म तत्व विनाशवान्, अनित्य है । आत्म सूक्ष्म है, व्यापक है, और अनात्म तत्व पंचभूतनिर्मित) है अतएव स्थूल है ॥२॥ 
(क्रमशः)

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