शनिवार, 24 सितंबर 2016

= विन्दु (२)८५ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८५ =**

द्वितीय पद - 
"जागरे सब रैण बिहांणी, 
जाय जन्म अंजली को पाणी ॥ टेक ॥ 
घड़ी घड़ी घड़ियाल बजावे, 
जे जाय सो बहुर न आवे ॥ १ ॥ 
सूरज चंद कहैं समझाय, 
दिन दिन आयु घटंती जाय ॥ २ ॥ 
सरवर पाणी तरुवर छाया, 
निश दिन काल गरासे काया ॥ ३ ॥ 
हंस बटाऊ प्राण पयाना, 
दादू आतम राम न जाना ॥ ४ ॥" 
अरे प्राणी ! मोह निद्रा से शीघ्र जाग, तेरी आयु रात्रि क्षीण हो रही है । उसके साथ साथ तेरा यह नर जन्म अंजलि के जल के समान क्षीण हो रहा है । घड़ी - घड़ी में पहरेदार घड़ियाल बजाकर सूचित कर रहा है - जैसे घड़ी गई हुई फिर नहीं आती है, वैसे ही जो दिन चला जाता है, वह फिर नहीं आता है । सूर्य, चन्द्र भी अपने आवागमन से यही समझा रहे हैं - प्रतिक्षण प्राणी की आयु घटती जा रही है । जैसे सरोवर का जल और वृक्ष की छाया प्रतिक्षण घटती जाती है, वैसे ही रात्रि - दिन के प्रतिक्षण में शरीर की आयु को काल क्षीण कर रहा है । इस प्रकार आत्म - रूप राम के बिना जाने ही इस पथिक जीव रूप हंस के प्राण प्रस्थान कर जाते हैं । उच्च स्वर से उक्त पद गाने का आरंभ करते ही प्रयागदास जाग गये और दोनों पदों को सुनकर प्रयागदास तथा अन्य सबके मन पर काल चेतावनी उपदेश का अच्छा प्रभाव पड़ा । अब किरड़ोली में प्रतिदिन सत्संग होने लगा । वहां के तथा आस - पास के ग्रामों के लोग आकर संत दर्शन तथा सत्संग का लाभ उठाने लगे । (क्रमशः)

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